आंखों की सबसे खतरनाक बीमारी है ग्लूकोमा ! अंधेपन की बनती है वजह, पता लगाने का सिर्फ एक तरीका, जानें 5 बड़ी बातें

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हाइलाइट्स

ग्लूकोमा की कंडीशन में लोगों की ऑप्टिक नर्व डैमेज होने लगती है.
ग्लूकोमा से बचने के लिए लोगों को रेगुलर आई चेकअप कराना चाहिए.

Glaucoma Eye Disease: आंखों को हेल्दी रखने के लिए इनका खास खयाल रखने की जरूरत होती है. आंखों में कोई बीमारी हो जाए, तो अंधेपन का खतरा हो सकता है. यही वजह है कि आंखों को लेकर विशेष सावधानी बरतने की सलाह दी जाती है. आंखों से संबंधित कई बीमारियां होती हैं, जिनमें सबसे खतरनाक ग्लूकोमा (Glaucoma) को माना जा सकता है. इस बीमारी की वजह से लोग हमेशा के लिए अंधे हो सकते हैं और उनकी आंखों की रोशनी को वापस लाना संभव नहीं होता है. आखिर इस बीमारी की वजह क्या होती है और किन लोगों को इसका सबसे ज्यादा खतरा है? आंखों के डॉक्टर से जान लेते हैं.

नई दिल्ली के सर गंगाराम हॉस्पिटल के नेत्र रोग विशेषज्ञ डॉ. तुषार ग्रोवर के मुताबिक ग्लूकोमा बेहद गंभीर बीमारी है, जिसमें हमारी आंखों की ऑप्टिक नर्व डैमेज होने लगती है. ऑप्टिक नर्व हमारी आंखों को ब्रेन से कनेक्ट करती है. यह नर्व पूरी तरह डैमेज हो जाए, तो व्यक्ति हमेशा के लिए अंधा हो सकता है. इस नर्व को डैमेज होने के बाद न तो किसी इलाज से ठीक किया जा सकता है और न ही इसे ट्रांसप्लांट किया जा सकता है. हालांकि सही समय पर ग्लूकोमा का पता चल जाए, तो दवा, आई ड्रॉप्स और सर्जरी के जरिए नर्व की डैमेज को रोका जा सकता है.

क्या है ग्लूकोमा की सबसे बड़ी वजह?

डॉ. तुषार ग्रोवर के अनुसार ग्लूकोमा को काला मोतिया भी कहा जाता है. इस बीमारी की सबसे बड़ी वजह आंखों का प्रेशर बढ़ना होता है. लंबे समय तक आंखों का प्रेशर बढ़ा रहे, तो इससे ऑप्टिक नर्व डैमेज होने लगती है. इसके अलावा भी ब्लड की सप्लाई समेत कई कारण होते हैं, लेकिन उन्हें लेकर एक्सपर्ट्स के बीच एकराय नहीं है. आमतौर पर लोगों की आंखों का नॉर्मल एवरेज प्रेशर 21 mmHg से नीचे होता है. लोगों की आंखों के हिसाब से इसमें थोड़ा बहुत बदलाव देखने को मिलता है. आंखों की इस परेशानी का पता लोगों को नहीं चलता है. केवल जांच के जरिए ही ग्लूकोमा का पता लगाया जा सकता है.

क्यों इसे कहा जा सकता है साइलेंट किलर?

नेत्र रोग विशेषज्ञ की मानें तो ग्लूकोमा एक ऐसी बीमारी है, जिसका पता लोगों को नहीं चल पाता है. जब यह बीमारी एंड स्टेज में होती है, तब उन्हें इसका पता चल पाता है. यही वजह है कि यह डिजीज साइलेंट तरीके से लोगों की आंखों को खराब कर देती है. ग्लूकोमा होने के बाद शुरुआत में लोगों के सेंटर की नजर ठीक रहती है, लेकिन फील्ड ऑफ विजन छोटा हो जाता है. एंड स्टेज में सेंटर की नजर भी चली जाती है. वैसे तो यह बीमारी छोटी उम्र में भी हो सकती है, लेकिन 40 साल की उम्र के बाद इसका खतरा ज्यादा होता है. जिन लोगों को ग्लूकोमा की फैमिली हिस्ट्री है, उन्हें भी खतरा काफी ज्यादा होता है.

कैसे लगाएं ग्लूकोमा का पता और क्या है इलाज?

डॉक्टर की मानें तो लोगों को साल में एक या दो बार अपनी आंखों की जांच कराकर प्रेशर चेक कराना चाहिए. इसका पता लगाने के लिए विजुअल फील्ड टेस्ट भी किया जाता है. खुद से कोई भी व्यक्ति इस बीमारी का पता नहीं लगा सकता है. इलाज की बात करें, तो आंख के प्रेशर को दवाओं और आई ड्रॉप्स से कम करते हैं. इसके लिए गंभीर मामलों में लेजर सर्जरी भी की जाती है, ताकि आगे जितनी नर्व बची है, वह डैमेज न हो. नर्व डैमेज को रिकवर करने का कोई तरीका नहीं है. इससे बचने के लिए लोगों को समय समय पर आंखों की जांच करानी चाहिए.

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Tags: Eyes, Health, Lifestyle, Trending news

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