बाल कहानी : ‘त्योहारों का दिन’ गोट्या के दिलचस्प किस्से

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गोट्या जैसे शरारती लेकिन बेहद दिलचस्प पात्र ने गांव की लड़ाकी मौसी को अपनी शरारतों से कैसे जीता, दूसरी से एकदम चौथी में प्रवेश पाने के लिए गोट्या ने क्या किया, छत्रपति शिवाजी, लोकमान्य तिलक, झांसी की रानी वीर सावरकर, फिल्म की नायिका और सर्कस का जोकर इनको एक ही नाटक में प्रस्तुत करनेवाला गोट्या जब क्रिकेट का बल्ला हाथ में लेकर खेल के मैदान में उतरा तो क्या हुआ? अपनी छोटी बहन सुमा को अपनी कमाई से भईया दूज पर एक रोचक पुस्तक देने के लिए गोट्या ने कैसी-कैसी मुसीबतें झेलीं? अपना अंग्रेज़ी का ज्ञान झाड़ने के लिए पड़ोसी भाई साहब से इनाम में फाउंटेनपेन कैसे प्राप्त किया? गोट्या कथा-श्रृंखला में श्री ना. धो. ताम्हनकर ने विभिन्न प्रसंगों को रखकर एक ऐसी नई दुनिया रची है, जिसमें से पाठकों को निकलने का मन नहीं करता.

साहित्य अकादेमी से प्रकाशित ‘गोट्या कथा-श्रृंखला’ का मराठी से हिंदी में अनुवाद सुरेखा पाणंदीकर ने किया है. गौरतलब है, कि पाणंदीकर ने हिंदी, मराठी तथा अंग्रेज़ी में उपन्यास और कहानियां लिखी हैं. प्रस्तुत है गोट्या कथा-श्रृंखला से एक दिलचस्प बाल कहानी ‘त्योहारों का दिन’

कहानी : त्योहारों का दिन
गोट्या केवल स्कूल और हमारे घर में ही नहीं हिल-मिल गया था, पास-पड़ोस में भी गोट्या अपनी करतूतों के नाते मशहूर हो गया. गांव के बड़े जमींदार के बगीचे से सुमा के लिए जुही – गुलाब के फूल ले आता तो कभी पड़ोस की लड़ाकी मौसी के घर में बिल्ली छोड़ देता. लेकिन यही लड़ाकी मौसी जिससे सभी डरकर दूर ही रहते थे, गोट्या की एक करतूत से बड़ी खुश हुई.

गणेश पूजा के दिनों, मैंने सुना और गोट्या को पटाखे ला दिये और उनसे वादा लिया कि वे केवल आरती के समय ही पटाखे छोड़ेंगे और कोई शैतानी नहीं करेंगे.

सुबह सात और रात के आठ बजे मैं पूजा और आरती करता था और सुबह सात बजे ही हमारे गांव के बड़े लालाजी सेठ डूंगरचंद तांगे में बैठ, हमारे घर के आगे से निकल कर अपनी दुकान पर जाते थे. डूंगरचंद यानी पहाड़चंद नाम उन पर सही जंचता था. वे इतने मोटे थे कि तांगे पर खुद नहीं चढ़ नाते थे. उन्हें दो नौकर मिलकर चढ़ाते थे.

मैंने आरती शुरू की. मेरी पत्नी मेरे साथ आरती गा रही थी. गोट्या और सुमा आंगन में पटाखे ला रहे थे.

ठां..ठौंय… तीन-चार पटाखों की आवाज आई और उसके फ़ौरन बाद “लाला जी मर गये” की चिल्लाहट मुनाई पड़ी.

“अरे पहाड़ गिरा, डूंगर गिरा शैतान बच्चों ने शोर मचाया.

“मरी गयो रे लालाजी, मरी गयो,” लालाजी की दर्दभरी चीख इस शोर में छुप गई. पटाखे की आवाज से तांगे का घोड़ा डरकर उछलने लगा. पीछे बैठे लालाजी कहां संभाल पाते अपने को ? घोड़ा ज्यों ही डरकर अपने पिछले दो पैरों पर खड़ा हुआ, लालाजी गिर पड़े. तांगेवाला घोड़े को शांत करने में लग गया.

बड़ी मुश्किल से लोगों ने लालाजी को तांगे में दुबारा बिठाया. तांगेवाला हमारे दरवाज़े के सामने बच्चों पर चिल्ला रहा थाजब मैं आरती पूरी करके बाहर आया तब वह कहने लगा, “आपके बच्चों के पटाखों की वजह से घोड़ा डर गया, अगर लालाजी को कुछ हो जाता तो ? पता नहींआजकल के बच्चे कैसे हैं! और मां-बाप भी उन्हें नहीं टोकते?” तांगेवाला बके जा रहा था.

“मैंने अपने आंगन में पटाखे छोड़े, मुझे क्या पता कि लालाजी का तांगा जा रहा है और घोड़ा हड़क जाएगा.” गोट्या ने कहा. पर उसकी कांपती हुई आवाज़ और सुमा का डरा हुआ चेहरा बता रहा था कि शैतानी उन्होंने ही की होगी !

बच्चों की शैतानी पर उन्हें मारना नहीं चाहिए, शैतानी नहीं करेंगे तो वे बच्चे कैसे हुए? उन्हें डांटना भी नहीं चाहिए, यह मेरा मत था, पर लालाजी और तांगे वाले को शांत करने के लिए गुस्से का नाटक करना पड़ा. मैंने तेज़ आवाज़ में कहा, “ठीक है, अंदर चल, तेरी शैतानी का मज़ा चखाता हूं !” गोट्या मेरे गुस्से के नाटक को सच समझ कर डर गया. उसकी आंखों में आंसू भी छलक आएत्योहार के दिन खुशी और आनंद से नाच रहे बच्चों को रोता देख, मुझे अपने पर गुस्सा आने लगा, लेकिन नाटक करना मेरी मजबूरी थी.

इतने में पड़ोस की लड़ाकी मौसी हमारे घर की तरफ़ आती दिखाई पड़ी. हम डर गए. “यह लड़ाकी औरत हमारे यहां क्यों आ रही है,” मैं सोच में पड़ गया. पति के जाने के बाद मनु मौसी अकेली रहती थीपास में पैसा थाकोई बाल-बच्चा भी नहीं था. अकेली जान, मस्त रहती, पर वह बड़ी तेज़ दिमाग़ औरत थी. ज़रा-सी बात पर गुस्सा खाकर ऐसा लड़ती कि गांव में सभी उससे बचकर रहतेऔर अब वही हमारे घर की तरफ़ चली आ रही थी.

“कहां है वह तेरा छोकरा?” मनु मौसी ने पूछादोनों एक-दूसरे की तरफ़ देखने लगे.

“कहां है वह ?” मौसी ने दुबारा पूछा.

“कौन ?” हमने सवाल किया

“वही गोट्या? उसका स्कूल तो दोपहर में लगता है. “

“ऊपर बैठा होगा पढ़ने.” पत्नी ने जवाब दिया. “बुला तो उसे, गोट्या…. ए गोट्या” मौसी ने खुद आवाज दी.

गोट्या नीचे आया. उसका रुआंसा चेहरा सहमा दिखाई पड़ रहा था “क्यों, क्यों रो रहे हो? तुमने डांटा होगा?” मेरी तरफ़ देखकर मौसी बोली.

“शैतानी करने पर और क्या करता?”

“थोड़ी देर पहले घटी बात को शैतानी कह रहे हो? बच्चों ने पटाखे छोड़े तो इसमें शैतानी क्या हुई? अगर बच्चे नहीं चलाएंगे पटाखे तो क्या तुम चलाओगे इस उमर में पटाखे? और शैतानी की बात कौन तू कह रहा है? अपना बचपन भूल गया? इतना शैतान था तू कि तेरी मां सत्यभामा बाई मेरे पास आकर होया करती थी तेरी शरारतों से दुखी होकर….खबरदार बच्चों को बेकार में डांटा तो “

मुझे फटकार कर वह गोट्या की ओर मुड़ी- “गोट्या… तूने आज अच्छा सबक सिखाया उस मोटे लाला डूंगरचंद को मेरे तीन सौ रुपये खाए बैठा तेरा वह डूंगरचंद और बेचारा सुभाना रोता है. उसके खेत हड़प कर लिए इस शैतान लाला ने. कर्ज़ के बदले में उसका खेत लिखवा लिया. बेचारा सुभाना पढ़ना नहीं जानता. लालाजी के कहने पर उसने अंगूठा लगा दियाग़रीब और असहाय लोगों को और औरतों को छलनेवाले इस मोटे को आज अच्छा सबक सिखाया गोट्या ने कितना मज़ा आया जब वह मोटा लाला धड़ाम से रास्ते पर गिर पड़ा.”

“ले बेटा यह ले…” कहकर मौसी ने चांदी की कटोरी से प्रसाद का लड्डू गोट्या को देना चाहा. गोट्या मेरी पत्नी की तरफ देखने लगा.

“अरी बहू क्यों मना कर रही है. कह दे ना इसे लेने के लिए.” मौसी बोली.

“मैं कहां मना कर रही हूं ले, ले, गोट्या मौसी का दिया प्रसाद खा ले, मौसी को तसल्ली होगी.”

“पर भाभी, सुमा कहां है?” गोट्या ने पूछा “अच्छा तो उस छोकरी में जान अटकी है तेरी. पर मैं यह इनाम तुझे तेरी बहादुरी के लिए दे रही.” मौसी ने कहा

“पर मौसी, पटाखे तो सुमा के थे. अपने पटाखे तो मैं खत्म कर चुका था. सुमा ने अपने पटाखे दिए थे मुझे और उन्हीं पटाखों से घोड़ा डर गया था और लालाजी गिर पड़े थे,” गोट्या ने खुलासा किया.

“तब तो सुमा को भी इनाम मिलना चाहिए. ऐसा करो, अभी तुम यह लड्डू बांट के खा लो और थोड़ी देर बाद आना, तब मेरी पूजा खत्म हो जाएगी. फिर मैं दोनों को खाने के लिए और चीजें दूंगी.” मौसी ने कहा.

“पर मौसी इस तरह बच्चों को इनाम देना क्या ठीक है?”

“ओ हो, तो अब आपको इनाम देना बुरा लग रहा है? जब खुद छोटे थे तो छोटे-छोटे काम के लिए नी बादाम, छुहारा, मिश्री इनाम लिए बिना मानते नहीं थे कितना बिगड़ गए तुम उन इनामों से?” जाते-जाते मौसी बोली फिर पलटी जैसे कुछ याद आ गया हो. “अच्छा याद आया, इस साल नवरात्रों में वही पंडित और सुमा कन्या जीमेंगे मेरे यहां.”

“पर मौसी इस पंडित के पास रेशमी धोती नहीं ! फिर कैसे जीमेगा यह पंडित ?”

“जब तुम बड़ों ने ही धर्म छोड़ दिया तो बच्चों का क्या, उनके पास कहां से होगी रेशमी धोती. मैं दूंगी रेशम धोती गोट्या के लिए.”

“पर मौसी, दूसरे के कपड़े पहनने से चमड़ी के रोग लग जाते हैं मास्टर जी ने बताया था, मैं नहीं पहनूंगा दूसरे की धोती ” गोट्या ने कहा

“देखा मौसी, कैसा कठिन सनकी पंडित है यह कैसे निभेगी आपकी इसके साथ?” मैंने कहा.

“खूब निभेगीऐसे पचास पंडितों को निभा सकती हूं मैं. अच्छा गोट्या, मैं नई बनारसी रेशमी धोती ला दूंगी तेरे लिएऔर इस कन्या को रेशमी घाघरा चोली.” कहकर मौसी चली गई

शैतानी के लिए बच्चों को सज़ा मिलती है पर हमारे गोट्या को मिला इनाम और साथ भीऔर वह भी जिससे सारा गांव डरता है उस मनु मौसी सेमें सुमा को

नवरात्र और दशहरा मजे में गुज़रादशहरे के दिन गोट्या और सुमा को रेशमी धोती, घाघरा चोली पहनाकर मौसी हमारे यहां आई, बोली, “देख कैसे प्यारे लग रहे हैं बच्चे किसी की नज़र न लग जाए नज़र उतारना इनकी, समझी बहू.”

अब तक तो मौसी का प्यार बच्चों पर उमड़ रहा था पर मौसी का क्या भरोसा ! पता नहीं कब किस बात पर चिढ़ जाए और फिर उनसे राम ही बचाएउस पर गोट्या का नटखट स्वभाव ! हम डर ही रहे ये और पांच-छह दिनों में ही हमारा डर सच सा साबित हुआ. छुट्टी का दिन था. दोपहर के तीन-चार बजे होंगेबच्चे बाहर खेल रहे थे कि एक मोटी-सी बिल्ली हमारे आंगन में कूद पड़ीबस गोट्या और बच्चे उसके पीछे पड़ गए. कंकड़ उठाकर उसे मारने लगे. पर बिल्ली बच्चों से ज्यादा चालाक थी. वह पास के घर के आंगन में घुसी. दरवाजा बंद था. उसने खिड़की में से छलांग लगाई और सीधी घुस गई मीसी की रसोई में.

“गोट्या, यह क्या किया तुमने ? बिल्ली रोज़ दूध चट कर जाती है, मौसी हमेशा गालियां देती है बिल्ली

को. और अब तेरी वज़ह से बिल्ली, मौसी की रसोई में घुसी है और मौसी गई होगी मंदिर में कथा सुनने. जब आएगी तब क्या होगा?” सुमा को चिंता हुई.

‘घबरा नहीं सुमा! अगर बिल्ली मेरी वजह से अंदर गई है तो बाहर भी मैं निकालूंगा.” और तभी

उसे तरकीब सूझी

सामने के मोटर गेराज से मोटर धोने वाला बड़ा-सा पाइप और पंप ले आया गोट्या बाल्टी में पानी भरकर उसमें से पंप से पानी का फव्वारा बिल्ली पर मारने की योजना बनाई गई. पर खिड़की काफ़ी ऊपर. “ठीक है मैं खड़ा रहता हूं मेरे कंधे पर चढ़कर रंगनाथ तू अंदर पानी का फव्वारा चलाडरकर बिल्ली बाहर निकल आएगी.” गोट्या ने कठिनाई दूर की “बंडू तू पंप को कसकर पकड़ना बाल्टी में, और फिर बलाना ऊपर-नीचे.” गोट्या ने कप्तानी कर सबको काम बांट दिया, और खिड़की के नीचे रंगनाथ को कंधे पर ले खड़ा हुआ

फर-फर पंप चलते ही रसोई घर में बारिश हो गई

बेचारी मौसी, बिल्ली की बजाय फव्वारे का पानी उस पर ही बरसा. दोपहर को रसोई घर में वह टी थी, क्योंकि वहां ठंडक थी गरमी की दोपहर में वहां नींद अच्छी आती थीपानी उसके मुंह पर गिरा. वह हड़बड़ाकर उठ बैठीकहीं यह भूत-पिशाच तो नहीं, यह सोचकर डर से चीखती बाहर आई. उसकी चीखें सुनकर लोग जमा हो गए.

बाल्टी का पानी खत्म हो गया था. और बारिश रुक गई थी. जब लोगों को असलियत मालूम हुई तो वे खूब हंसे

“बुढ़िया को खूब नहलाया!” कहते हुए वे चल पड़े अपने-अपने घर. मौसी का गुस्सा अब सातवें नासमान तक पहुंचा. वह बच्चों पर गालियों की बौछार करने लगी. पर बच्चे वहां थे कहां, जो उसकी लियां सुनते ! वे तो कब के रफूचक्कर हो चुके थे.

दिनभर मौसी को पता नहीं लगा कि वह शैतानी किन बच्चों की थीऔर अगर कोई उसे कहता भी कि गोट्या की शैतानी थी तो वह विश्वास नहीं करतीक्योंकि जब उन्होंने गोट्या से पूछा, “गोट्या तूने तो नहीं पानी बरसाया मुझ पर ?” तो गोट्या ने बड़े भोलेपन से कहा, “नहीं मौसी, क़सम सेमैंने और सुमा दीदी ने पंप को हाथ भी नहीं लगाया.”

और गोट्या ने सच तो कहा था. पंप तो बंडू और रंगनाथ ने चलाया थागोट्या ने तो केवल अपने कंधे पर रंगनाथ को खड़ा किया था. इस तरह पंप को हाथ लगाए बिना उसने मौसी को नहला दिया था

फिर मौसी को किसी बात का शक़ न हो, इसलिए गोट्या ने मौसी के अनेक छोटे-छोटे काम करके उनका मन जीत लिया. वह रोज़ उनके लिए पूजा के लिए फूल, बेल के पत्ते, तुलसी के पत्ते ला देता.

एक दिन जब मौसी नदी पर नहाने का अपना नियम न निभा सकी, तो गोट्या ने नदी का पानी कहकर नल के पानी से घड़ा भर कर ला दिया. आख़िर नलों में भी नदी का पानी ही तो आता थाइस सेवा का फल भी गोट्या को मिला. दीवाली के दिन नहा-धोकर हम नाश्ता करनेवाले ही थे कि मौसी गोट्या और सुमा को दीवाली के नाश्ते के लिए बुलाने आई.

अकेले होते हुए भी भगवान कृष्ण का प्रसाद चढ़ाने के लिए मौसी हर पकवान बनाती थी. और इस साल भगवान कृष्ण के साथ गोट्या और सुमा को को भी मौसी के बनाए स्वादिष्ट पकवान दीवाली के चारों दिन खाने को मिले. शाम को मौसी आई. रुपये देकर मुझसे बोली, “इसके पटाखे, अनार और फुलझड़ी लाना.”

“मौसी आप फुलझड़ियां जलाओगी?” मैंने आश्चर्य से पूछा.

“हां, हां, मैं अब इस उम्र में फुलझड़ियां, पटाखे चलाऊंगी और लड़कियों के साथ किकली खेलूंगी और नाचूंगी भी. तू भी आना मेरे साथ नाचने शरम नहीं आती मेरा मजाक करते! सुनो गोट्या और सुमा, रोज़ शाम को आना और पटाखे चलाना ये दो-चार दिन ही नहीं, तुलसी विवाह तक समझ गये !” आम लोगों की दीवाली चार दिन में खत्म होती है, पर गोट्या और सुमा की दीवाली अगले, पंद्रह दिनों यानी तुलसी-विवाह तक चलती रही.

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