नई दिल्ली. बाल विवाह का कानून तय आयु से कम उम्र में हो रही शादियों को रोकने के लिए बनाया गया था. कर्नाटक में एक ऐसा मामला सामने आया है जहां हाई कोर्ट ने पत्नी की याचिका पर मानवीय आधार पर पति के खिलाफ बाल विवाह निषेध अधिनियम, 2006 की धारा 9, 10 और 11 के तहत जारी आपराधिक केस को रद्द कर दिया है. बेंच ने पीड़िता के आधार कार्ड पर गौर किया, जिससे पता चला कि शादी के वक्त उसकी उम्र लगभग 17 साल 8 महीने थी. हालांकि वह अब बालिग है और उसकी उम्र 22 वर्ष से अधिक है. शादी से दोनों का एक बच्चा भी है.
हाई कोर्ट में लगाई गई याचिका में पत्नी की तरफ से कहा गया कि बच्चे के साथ-साथ अपनी आजीविका के लिए वो पेश मामले में आरोपी बनाए गए पति पर निर्भर है. महिला ने दलील दी कि यदि आपराधिक कार्यवाही जारी रखने की अनुमति दी गई और याचिकाकर्ता को जेल में डाल दिया गया, तो उसे और उसके बच्चे को न्याय मिलने के बजाय और अधिक पीड़ा और दुख में डाल दिया जाएगा.
यह भी पढ़ें:- मजदूरों के बाहर आने के बाद क्या है आगे का प्लान…कहां और कैसे होगा इलाज? 5 प्वाइंट में समझें

पत्नी द्वारा दायर हलफनामे पर विचार करते हुए, न्यायमूर्ति हेमंत चंदनगौदर ने याचिका को रद्द करने की अनुमति दी और कहा, “यदि आपराधिक कार्यवाही जारी रखने की अनुमति दी गई, तो इसके परिणामस्वरूप याचिकाकर्ता को जेल में डाल दिया जाएगा, और यह सेवा के बजाय दुख और पीड़ा का कारण बनेगा.” उत्तरजीवी और उसके बच्चे के लिए न्याय का अंत. इसलिए, आपराधिक कार्यवाही जारी रखना कानून की प्रक्रिया का दुरुपयोग होगा.”
.
Tags: Karnataka High Court, Karnataka News
FIRST PUBLISHED : November 28, 2023, 18:38 IST