Deepfake पर सुनवाई के दौरान हाईकोर्ट ने क्यों किया फिल्मों का जिक्र? कह दी ऐसी बात कि…

Picture of Gypsy News

Gypsy News

दिल्ली हाईकोर्ट ने सोमवार को इस बात पर आपत्ति जताई कि क्या वह आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) तकनीक से उत्पन्न ‘डीपफेक’ सामग्री के उपयोग पर लगाम लगाने के लिए कोई निर्देश जारी कर सकता है? कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश मनमोहन और न्यायमूर्ति मिनी पुष्करणा की पीठ ने एक वकील चैतन्य रोहिल्ला द्वारा डीपफेक वीड‍ियो और फोटो बनाने वाली वेबसाइटों तक पहुंच को रोकने के लिए दायर एक जनहित याचिका (पीआईएल) पर विचार कर रही थी.

बार एंड बेंच की र‍िपोर्ट के मुताब‍िक, याचिकाकर्ता ने कोर्ट से डीपफेक और एआई के यूज के ल‍िए दिशानिर्देश तय करने का भी आग्रह किया था. हालांकि, कोर्ट ने बताया कि यह मुद्दा बहुत जटिल है और सरकार के लिए इस मामले को सुलझाना और एक संतुलित समाधान तक पहुंचना बेहतर होगा.

हाईकोर्ट के पीठ ने कहा क‍ि यह तकनीक अब बॉर्डरलेस वर्ल्‍ड (सीमाहीन दुनिया) में उपलब्ध है. आप नेट को कैसे नियंत्रित करते हैं? इस पर इतनी निगरानी नहीं रख सकते. आखिरकार, नेट की स्वतंत्रता खो जाएगी. इसलिए बहुत महत्वपूर्ण है क‍ि इसमें संतुलन कारक शामिल हो. आपको एक ऐसे समाधान पर पहुंचना होगा जो सभी हितों को संतुलित करता हो. केवल सरकार ही अपने सभी संसाधनों के साथ ऐसा कर सकती है. उनके पास डेटा है, उनके पास व्यापक मशीनरी है और उन्हें इसके बारे में निर्णय लेना होगा. यह एक बहुत ही कठिन कदम है और बहुत जटिल मुद्दा है. कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश मनमोहन ने कहा क‍ि यह कोई साधारण मुद्दा नहीं है.

मीडिया को कैसे पता चल गया… संजय स‍िंह ने पूछा तो कोर्ट ने कहा … लीक होने की बात नहीं है

कोर्ट ने यह भी कहा कि डीपफेक और एआई का कुछ डोमेन में लाभकारी उपयोग भी है. कोर्ट ने कहा क‍ि जब वे फिल्में बनाते हैं, खासकर युद्ध फिल्में तो डीपफेक बहुत महत्वपूर्ण होता है. एक व्यक्ति के साथ वह उस व्यक्ति की 1000 डुप्‍लीकेट दिखाते हैं. याचिकाकर्ता की ओर से पेश वकील मनोहर लाल ने कहा कि अदालत कम से कम कुछ दिशानिर्देश जारी कर सकती है, ताकि डीपफेक या एआई तकनीक का दुरुपयोग करने वाली निजी पार्टियों को जवाबदेह ठहराया जा सके.

हाईकोर्ट ने सुझाव दिया कि वेबसाइटों से यह खुलासा करने के लिए कहा जा सकता है कि उनकी सामग्री एआई द्वारा कब तैयार की गई है. उन्होंने कहा कि ऐसी वेबसाइटों को अवैध सामग्री उत्पन्न करने से भी रोका जा सकता है. उन्होंने तर्क दिया कि केंद्र सरकार को डेटा गोपनीयता (डिजिटल डेटा संरक्षण अधिनियम) पर एक कानून लाने में सात साल का लंबा समय लगा और एआई के दुरुपयोग के मुद्दे को इतने लंबे समय तक अनियमित नहीं छोड़ा जा सकता है.

वकील ने तर्क दिया क‍ि जब तक वे समाधान लेकर आएंगे. कई और समस्याएं पैदा हो सकती हैं. कोर्ट ने कहा क‍ि स्वाभाविक रूप से कानून पीछे है. आप इसमें मदद नहीं कर सकते और आप नहीं जानते कि तकनीक किस ओर जा रही है. याचिकाकर्ता के वकील ने जवाब दिया कि विनियमन तैयार होने तक एआई का दुरुपयोग करने वाले लोगों को अभी भी जवाबदेह ठहराया जाना चाहिए.

उन्होंने कहा कि तकनीकी के कुछ क्षेत्रों की बात आती है, जिसमें टिकटॉक पर प्रतिबंध भी शामिल है, तो भारत यूरोपीय संघ या अमेरिका की तुलना में बहुत आगे है. उन्होंने कहा कि भारत को डीपफेक के मामले में जल्‍द ही कोई फैसला लेना चाह‍िए. केंद्र सरकार की ओर से पेश स्थायी वकील अपूर्व कुमार ने अदालत को आश्वासन दिया कि सरकार भी इस मुद्दे पर गंभीरता से विचार कर रही है.

सरकारी वकील ने अनुरोध किया क‍ि यह पहले से ही सार्वजनिक डोमेन में है कि मंत्रालय ने कहा है कि यह एक गंभीर मुद्दा है और इसका समाधान किया जाना चाहिए. मुझे निर्देशों के साथ वापस आने दीजिए. अदालत ने अनुरोध स्वीकार कर लिया और मामले को 8 जनवरी को आगे की सुनवाई के लिए सूचीबद्ध कर दिया.

Tags: DELHI HIGH COURT, Delhi news

Source link

और भी

Leave a Comment

इस पोस्ट से जुड़े हुए हैशटैग्स