यह कहानी 1971 के भारत-पाकिस्तान युद्ध में वीरता की अभूतपूर्व इबारत लिखने वाले भारतीय सेना के वीर मेजर बिमल किशन दास बड़गेल की है. उन दिनों, भारत ने पूर्वी पाकिस्तान में चल रहे बांग्लादेश मुक्ति संग्राम में हस्तक्षेप करने का फैसला कर लिया था. मेजर बिमल दास को दुश्मन के घर में घुसकर उसे सबक सिखाने की जिम्मेदारी दी गई थी. लिहाजा, मेजर बिमल दास अपनी सूझबूझ के चलते अपने साथियों के साथ बांग्लादेश के अंदरूनी इलाकों तक पहुंचने में सफल हो गए थे.
8 दिसंबर 1971 को मेजर बड़गेल को पाकिस्तानी सेना की तमाम चौकियों को नेस्तनाबूत करने की जिम्मेदारी सौंपी गई. लेकिन, मेजर बड़गेल के लिए इस जिम्मेदारी को पूरा करना इतना आसान नहीं था. पहले से घात लगाए बैठा दुश्मन लगातार अपनी एमएमजी और आर्टलरी पुायर से मेजर बड़गेल और उनके साथियों को निशाना बनाने की कोशिश में लगा हुआ था. हालात यहां तक पहुंच गए थे दुश्मन की सटीक और भारी गोलाबारी के चलते मेजर बड़गेल के साथी तितर बितर हो गए.
वहीं, मेजर बड़गेल और उनके साथियों के पास हो हथियार मौजूद थे, वह पाकिस्तानी सेना की एमएमजी और आर्टलरी के सामने बौेने साबित हो रहे थे. एक वक्त ऐसा भी आया जब झल्लाए दुश्मन ने भारतीय सैनिकों पर बारूदी गोलों की लगभग बरसात शुरू कर दी. ऐसे में पत्थरों की आड़ लिए भारतीय सैनिकों के लिए एक कदम बढ़ाना खुदकुशी करने के बराबर था. दुश्मन की आक्रामता को देख अब भारतीय जांबाजों का भी मनोबल टूटने लगा था. ऐसे में, मेजर बड़गेल ने अपनी कंपनी के हर साथी के पास जाकर उनका मनोबल बढ़ाया.
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मौजूदा हालात को देखते हुए मेजर बड़गेल ने अपनी साथियों के साथ मिलकर नई योजना बनाई और दुश्मन के ठिकानों को अलग अलग दिशाओं से घेरकर हमला करने का फैसला किया. भारतीय वीर आगे बढ़े और एक-दूसरे को काउंटर फायर देते हुए दुश्मन के ठिकानों के करीब तक पहुंचने में सफल हो गए. लेकिन, यहां उनके लिए एक नहीं चुनौती सामने खड़ी थी. दरअसल, भारतीय सैनिकों की गोलियां लगभग खत्म हो गई थी. ऐसे में, मेजर बड़गेल ने अपनी खुकरी से दुश्मन पर हमला करने का फैसला किया.
वह अपनी खुकरी ले दुश्मन के बंकर में घुस गए. मेजर बड़गेल को देख उनकी कंपनी के सैनिकों भी अपनी खुकरी ले पाकिस्तानी सैनिकों की ट्रेंच और बंकर में घुस गए. मेजर बड़गेल ने अपनी खुकरी से एक-एक कर पाकिस्तानी सैनिकों की गर्दन काटना शुरू कर दी. इस वक्त भारतीय सैनिक बंकर और ट्रेंच में मौजूद पाकिस्तानी सैनिकों को संभलने का एक भी मौका नहीं दे रहे थे.
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देखते ही देखते ट्रेंच और बंकर में मौजूद ज्यादातर पाकिस्तानी सैनिक अब तक मौत की गहरी नींद सो चुके थे और जो बचे थे उन्होंने वहां से भागने में अपनी भलाई समझी थी. इस लड़ाई में मेजर बिमल किशन दास बड़गेल बुरी तरह से जख्मी हो गए थे, लेकिन उन्होंने अपनी सूझबूझ और बहादुरी से दुश्मन की तमाम चौकियों पर जीत का परचम लहरा दिया था. मेजर बिमल किशन दास बड़गेल को उनके अद्मय साहस के लिए वीर चक्र से सम्मानित किया गया था.
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FIRST PUBLISHED : December 11, 2023, 07:48 IST