Book Review : प्रवासी लेखकों के जीवनानुभवों और सात समंदर पार की कहानियों का दस्तावेज है ‘कैलिप्सो’

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हिंदी, मात्र एक भाषा नहीं, अपितु लोगों को आपस में जोड़ने का माध्यम भी है जो आज विश्व स्तर पर लोगों को एक सूत्र में पिरोने का काम कर रही है और इस काम में न सिर्फ प्रवासी साहित्यकार अपितु भारतीय साहित्यकार भी निरंतर प्रयासरत हैं. डॉ. प्रमोद पांडेय द्वारा संपादित कहानी-संग्रह ‘कैलिप्सो’ का भी यही उद्देश्य है, कि वर्तमान समय में भारत से बाहर रहनेवाला लेखक क्या सोच रहे हैं, उनकी विचारधारा क्या है, सम-सामयिक परिस्थितियों के प्रति वे कितना सजग हैं, अपने सृजन के प्रति कितने गंभीर हैं और क्या लिख रहे हैं? ‘कैलिप्सो’ के माध्य से इन्हीं प्रश्नों के उत्तर को ढूंढ़ने की एक सार्थक कोशिश की गई है. संग्रह में सम्मिलित प्रवासी लेखकों की कहानियों को पढ़कर निश्चित ही पाठक को विश्व चेतना के प्रवाह को समझने में मदद मिलेगी.

बहुमुखी प्रतिभा के धनी, भावुक हृदय तथा समाजमुखी प्रेरक दृष्टिकोण रखने वाले साहित्य प्रेमी और ‘कैलिप्सो’ के संपादक डॉ. प्रमोद पाण्डेय मुंबई में पिछले बीस सालों से अध्यापन कार्य के साथ-साथ साहित्य सृजन तथा हिंदी के प्रचार-प्रसार का काम कर रहे हैं. साहित्यिक कार्यों के अलावा सामाजिक कार्यों में भी उनका गहरा रुझान रहता है और उन्होंने उस ओर भी अपना अमूल्य योगदान प्रदान किया है. राष्ट्रीय तथा अंतरराष्ट्रीय मान्यता प्राप्त पत्र-पत्रिकाओं तथा समाचार-पत्रों में अभी तक उनके चार दर्जन से अधिक आलेख तथा सात संपादित तथा दो मौलिक पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं. कई पुस्तकों में उन्होंने सहलेखन भी किया है. ‘कैलिप्सो’ के अलावा प्रवासी रचनाकारों की रचनाओं के दो और संग्रह ‘नया बसेरा’ तथा ‘प्रवासी पंछी’ भी उनके संपादन में प्रकाशित हो चुके हैं. डॉ. प्रमोद को साहित्यिक तथा सामाजिक सेवा के लिए हिंदी-सेवी शिक्षक सम्मान, शिक्षा सम्मान, सम्मेलन सम्मान, साहित्य रत्न सम्मान जैसे कई सम्मानों से सम्मानित किया जा चुका है.

बात भारतीय साहित्य व साहित्यकारों की हो या फिर प्रवासी साहित्य व साहित्यकारों की, सभी ने साहित्य सृजन में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है. प्रवासी कहानीकारों की कहानियों का साझा संकलन ‘कैलिप्सो’ संपादक के मन की कल्पना है. इस संकलन को साकार रूप प्रदान करने में इस संग्रह में सम्मिलित सभी प्रवासी साहित्यकारों ने अपना अमूल्य योगदान प्रदान किया है. दरअसल यह संकलन प्रवासी लेखकों के जीवनानुभव, आसपास के वातावरण तथा सात समंदर पार के अपने अनुभवों का दस्तावेज है.

गौरतलब है, कि आज से लगभग 150 साल पहले भारत से दक्षिण अफ्रीका, फ़ीजी, सूरीनाम, मॉरीशस, ट्रिनिडाड एण्ड टोबैगो आदि देशों में गए भारतीयों ने अपनी मेहनत के बल पर उच्च शिखर तक पहुंचने में सफलता प्राप्त की है. स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात एक बड़ा जनसमूह अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस, कनाडा, आस्ट्रेलिया, जर्मनी, हंगरी, मलेशिया, रूस, स्वीडन, नार्वे, अबूधाबी, न्यूजीलैण्ड, अर्जेण्टीना आदि देशों में उच्च शिक्षा प्राप्त कने के लिए गया, जिनमें से कुछ लोग लौट आए तो कुछ लोग हमेशा-हमेशा के लिए वहीं बस गए. आज की तारीख में प्रवासी भारतीय दुनिया के अनेक देशों में फैले हुए हैं और सफलतापूर्वक अपने संस्कारों और काबिलियत के साथ आगे बढ़ रहे हैं.

हिंदी मात्र एक भाषा ही नहीं है अपितु लोगों को आपस में जोड़ने का माध्यम भी है जो आज विश्व स्तर पर लोगों को एक सूत्र में पिरोने का कार्य कर रही है और इस कार्य में न सिर्फ प्रवासी साहित्यकार अपितु भारतीय साहित्यकार भी निरंतर प्रयासरत हैं. प्रवासी कहानी-संग्रह ‘कैलिप्सो’ ऐसे प्रवासी लेखकों की कहानियों को लेकर संग्रहित किया गया है, जो प्रवासी लेखकों की रचनाधर्मिता को साकार रूप प्रदान करता है. इस संग्रह में डेनमार्क में रह रहीं ‘अर्चना पैन्यूली’ (कानपुर, उत्तर प्रदेश) की कहानी ‘उसका कर्ण’, लंदन की ‘ज़किया ज़ुबैरी’ (लखनऊ) की कहानी ‘मारिया’ और ‘गरीब तो कई बार मरता है’, इंग्लैंड के नॉटिंघम शहर में रहने वाली जय वर्मा (मेरठ (जिवान) उत्तर प्रदेश) की कहानी ‘गुलमोहर’ को शामिल किया गया है. जय नॉटिंघम एशियन आर्ट्स काउंसिल की निदेशक और नॉटिंघम UNESCO सिटी ऑफ लिटरेचर की सदस्य होने के साथ-साथ काव्यरंग की अध्यक्ष भी हैं.

डॉ. प्रमोद पांडेय द्वारा संपादित इस संग्रह में पंजाब के जगरांव में जन्मे तेजेंद्र शर्मा की दो कहानियों को शामिल किया गया है, जिनमें ‘अंधेरे-उजाले’ और ‘कैलिप्सो’ शामिल हैं. गौरतलब है कि इस संग्रह का शिर्षक भी तेजेंद्र शर्मा की कहानी ‘कैलिप्सो’ पर ही आधारित है. तेजेंद्र लंबे समय से ब्रिटिश रेल (लंदन ओवरग्राउंड) में कार्यरत हैं और लंदन में ही रहते हैं. साथ ही संग्रह में टोरंटो (कनाडा) में रहने वाले धर्मपाल महेंद्र जैन (झाबुआ, मध्य प्रदेश) की कहानी ‘उड़ान’ और ‘डॉलर का नोट’, मॉरिशस में रह रहे रामदेव धुरंधर की कहानी ‘इतिहास की दहलीज’ और ‘आदमखोर’, सिडनी (आस्ट्रेलिया) की रेखा राजवंशी (रेवाड़ी, हरियाणा) की कहानी ‘चंदा मामा दूर के’ और ‘प्रेम या छलावा’, इंग्लैंड में रह रहीं डॉ. वंदना मुकेश की कहानी ‘सरोज रानियां’ और मध्य प्रदेश के मेघनगर में जन्मी, टोरंटो (कनाडा) की डॉ. हंसा दीप की कहानी ‘हरा पत्ता, पीला पत्ता’ और ‘अधजले ठुड्डे’ को भी शामिल किया गया है.

प्रवासी हिन्दी साहित्य के अंतर्गत साहित्य की विभिन्न विधाओं, जैसे- कविता, उपन्यास, कहानी, नाटक, एकांकी, महाकाव्य, खंडकाव्य, अनूदित साहित्य, यात्रा वर्णन, आत्मकथा आदि का सृजन हुआ है. आज जो प्रवासी हिंदी साहित्य उपलब्ध है, उनमें प्रवासी हिंदी साहित्यकारों ने अपनी रचनाओं द्वारा नीति- मूल्य, मिथक, इतिहास व सभ्यता व संस्कृति के माध्यम से ‘भारतीयता’ को सुरक्षित रखने का सराहनीय कार्य किया है. प्रवासी साहित्यकारों ने ‘हिंदी’ को विश्व स्तर पर प्रवाहित करने तथा विश्व स्तर पर हिंदी को नई पहचान दिलाने का काम किया है. आज लगभग सभी प्रवासी साहित्यकार अपनी भाषा एवं संस्कृति की धारा विदेशों में प्रवाहित करते हुए उसके संवर्धन का कार्य निरंतर कर रहे हैं. प्रवासी हिंदी साहित्यकारों ने अपनी लेखन प्रतिभा का परिचय देते हुए विश्व स्तर पर हिंदी को न सिर्फ एक पहचान दिलाई है बल्कि विश्व के मानस पटल पर हिंदी को स्थापित करने का काम बखूबी कर रहे हैं.

साहित्य के द्वारा साहित्यकार अपने देश-काल और वातावरण का हू-ब-हू चित्र शब्दों के माध्यम से उकेरता है. बात भारतीय साहित्य व साहित्यकारों की हो या फिर प्रवासी साहित्य व साहित्यकारों की, सभी ने साहित्य सृजन में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है. प्रवासी कहानीकारों की कहानियों का यह साझा संकलन संपादक के मन की कल्पना है. इस संकलन को साकार रूप प्रदान करने में इस संग्रह में सम्मिलित सभी प्रवासी साहित्यकारों ने अपना अमूल्य योगदान प्रदान किया है. दरअसल यह संकलन प्रवासी लेखकों के जीवनानुभव, आसपास के वातावरण तथा सात समंदर पार के अपने अनुभवों का दस्तावेज है. ‘कैलिप्सो’ में सम्मिलित प्रवासी लेखकों की कहानियों को पढ़कर निश्चित ही पाठक को विश्व चेतना के प्रवाह को समझने में मदद मिलेगी.

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