Opinion: प्रधानसेवक नरेंद्र मोदी- सेवा के अभूतपूर्व 22 साल, सबसे ज्यादा शासन करने वाले पहले ‘गैर कांग्रेसी पीएम’

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हाइलाइट्स

पीएम नरेंद्र मोदी आज संवैधानिक पद पर रहने के 22 साल पूरे कर रहे है.
आज से ठीक 22 साल पहले पीएम नरेंद्र मोदी ने गुजरात के मुख्यमंत्री पद की शपथ ली थी.
दो दशकों में आइडिया ऑफ मोदी का विस्तार हुआ है.

नई दिल्ली. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (PM Narendra Modi) आज संवैधानिक पद पर रहने के 22 साल पूरे कर रहे है. आज से ठीक 22 साल पहले यानी 7 अक्टूबर 2001 को नरेंद्र मोदी ने गुजरात के मुख्यमंत्री पद की शपथ ली थी. उसके बाद 22 साल तक देश की राजनीति में जो हुआ, वो अपने आप में इतिहास बन चुका है. 4 अक्टूबर 2001 को नरेंद्र मोदी सर्वसम्मति से बीजेपी (BJP) विधायक दल के नेता चुने गए थे. तत्कालीन मुख्यमंत्री केशुभाई पटेल पद छोड़ने को तैयार नहीं थे लेकिन तब बीजेपी आलाकमान का मानना था कि भूकंप और राहत के मुश्किल दौर से वे निपटने में सफल नहीं रहे थे. इसलिए पहले बीजेपी महासचिव नरेंद्र मोदी को राहत और पुनर्वास के लिए बनी संचालन समिति का अध्यक्ष बनाकर गुजरात भेजा गया.

जहां उन्होंने पूरी अनहोनी और आम आदमी की मुश्किलों को करीब से देखा, जाना और उन्हें उबारने में भी लगे रहे. प्रचारक के तौर पर लोकप्रिय तो थे ही लेकिन जब मुश्किल घड़ी आई तो सीधे जनता के बीच जाकर उनकी मुश्किलों का समाधान ढूंढने की कला आलाकमान को भा गई और उनको गुजरात के सीएम की जिम्मेदारी सौंप दी गई. मुख्यमंत्री का पद संभालने के बाद सीएम मोदी ने अपनी पूरी बाबूशाही को अपनी तरह टेक-सेवी बनाने की प्रक्रिया शुरू कर दी. शपथ लेने के बाद पहले ही दिन उन्होंने 10 जिला कलेक्टरों के साथ वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग की. पहली बार ऐसा हुआ कि उनका किसी मुख्यमंत्री का शपथ ग्रहण समारोह भी वेब पर लाइव गया था.

आइडिया ऑफ मोदी बढ़ा
7 अक्टूबर 2023 को भारतीय लोकतंत्र की चुनावी राजनीति में पीएम मोदी ने 22 साल पूरे कर लिए. इन दो दशकों की खास बात ये है कि इनमें मोदी के विचार यानी आइडिया ऑफ मोदी का विस्तार हुआ है. 140 करोड़ भारतीयों की सेवा को समर्पित 22 साल की इस महत्वपूर्ण यात्रा को समझने के लिए ये जान लेना जरूरी है कि मोदी मैजिक क्या है और वो कैसे सफलता के नए-नए पैमाने स्थापित करता जा रहा है. 7 अक्टूबर 2001 में जब पहली बार नरेंद्र मोदी मुख्यमंत्री बने तब गुजरात भूकंप के झटकों से सहमा हुआ था. केशुभाई पटेल के इस्तीफे के बाद बीजेपी में भी खलबली मची थी. सत्ता संभाले 6 महीने ही हुए थे कि 27 फरवरी को गोधरा कांड हुआ और 28 फरवरी 2002 से गुजरात दंगों की आंच में झुलस गया.

हिंदू हृदय सम्राट से विकास पुरुष
2002 में विधानसभा चुनाव होने वाला था. नरेंद्र मोदी इस अग्निपरीक्षा में सफल हुए. प्रशासनिक मोर्चे पर कमान संभाली. राजनीतिक दबाव के बावजूद चुनाव का नेतृत्व किया और बीजेपी को प्रचंड जीत दिलाई. इसके बाद से ही नरेंद्र मोदी राजनीतिक तौर से शक्तिशाली होते गए. इसके बाद 2007 और 2012 में बीजेपी को गुजरात में प्रचंड जीत मिली. दो विधानसभा चुनाव जीतने के बाद ब्रांड मोदी देश में पॉपुलर हो गया. गुजरात के सीएम रहने के दौरान पहले कार्यकाल में जहां नरेंद्र मोदी ने हिंदू हृदय सम्राट की छवि बनाई, वहीं दूसरे कार्यकाल के बाद डेवलपमेंट का चेहरा बन गए. गुजरात मॉडल का प्रचार इतना जबरदस्त रहा कि अन्य राज्यों में भी इसकी चर्चा होने लगी. बिहार-यूपी जैसे सुदूर इलाकों के लोग भी गुजरात मॉडल की बात करने लगे. प्रधानमंत्री बनने के बाद ब्रांड मोदी और भी मजबूत हो गया.

2014 में मोदी बने देश के प्रधानसेवक
2014 के चुनाव में मोदी मैजिक का करिश्मा ऐसा चला की विपक्ष को लोकसभा चुनाव में मुंह की खानी पड़ी. मोदी मैजिक का असर था कि 2014 में बीजेपी को प्रचंड जीत मिली, और मोदी देश के प्रधानमंत्री बने. पिछले तकरीबन 9 साल में ब्रांड मोदी के सामने विपक्ष का सारा एजेंडा फेल साबित हो रहा है. पीएम मोदी के गु गवर्नेंस के सामने सभी फीके साबित हो रहे है. पीएम मोदी ने पिछले 9 सालो में देश की पहचान दुनिया के विकसित देशो के सामने अग्रणी देश के रूप में बना दी है. पीएम मोदी के नीति का ही नतीजा है कि आज देश दुनिया के सबसे बड़ी पांच देशो की अर्थव्यवस्था में से एक है.

चौंकाने वाले फैसले लेते हैं पीएम मोदी
पीएम नरेंद्र मोदी ने अपने प्रधानमंत्री के कार्यकाल में आलोचना की परवाह किए बगैर कई ऐसे फैसले लिए जिनसे न सिर्फ विपक्ष बल्कि भारत की जनता भी चौंक गई. धारा 370 खत्म करना, नोटबंदी, उड़ी हमले के बाद पाकिस्तान में सर्जिकल स्ट्राइक, पाकिस्तान समर्थित कश्मीर में एयर स्ट्राइक की विपक्ष ने आलोचना की. कोरोना की दूसरी लहर में लॉकडाउन के फैसला भी विरोधियों के निशाने पर रहा. सीएए को लेकर भी काफी हो-हल्ला हो चुका है. लेकिन पीएम अपनी दृढ इच्छाशक्ति से ना कभी झुके ना कभी रुके.

करप्शन पर नहीं घेर पाया विपक्ष
2014 से ही विपक्ष भ्रष्टाचार पर पीएम मोदी को घेरने की कोशिश में लगा हुआ है. लेकिन मोदी की बेदाग छवि ने विपक्ष के सारे मंसूबों पर पानी फेर रखा है. देश में भ्रष्टाचार के मुद्दे पर कई सरकारें सत्ता से बेदखल हो चुकी हैं. केंद्र की राजनीति में बड़े बदलाव भ्रष्टाचार के मुद्दे पर हुए हैं. 1989 के चुनाव में विश्वनाथ प्रताप सिंह ने बोफोर्स का मुद्दा उछाला था. वी.पी. सिंह अपनी जेब में एक पर्ची लेकर चलते थे और जनसभाओं में दावा करते थे कि उनके पास बोफोर्स के जुड़े कांग्रेस नेताओं की लिस्ट है.

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नरसिंह राव की सरकार भी घोटालों के घिरी थी, जिसका फायदा बीजेपी समेत विपक्ष को मिला था. 2014 में मनमोहन सिंह की सरकार कोयला घोटाले, 2जी और कॉमनवेल्थ घोटाले की चर्चा के बीच चुनाव में गई थी. नतीजा कांग्रेस चुनाव हार गई. कांग्रेस ने नरेंद्र मोदी सरकार को घोटाले पर घेरने की कोशिश की. मगर ब्रांड मोदी और पीएम की साफ छवि के सामने विपक्ष का सारा एजेंडा धरा का धरा रह गया. 2019 में कांग्रेस ने राफेल की खरीद में करप्शन का मुद्दा उठाया. नोटबंदी में करप्शन के आरोप लगाए. मगर मोदी मैजिक के सामने सारे वार फेल हो गए.

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