हाइलाइट्स
राजस्थान विधानसभा चुनाव 2023
राजनीतिक परिवारों में छिड़ी वर्चस्व की जंग
रिश्ते नातों पर हावी हो रही चुनावी सियासत
जयपुर. राजस्थान में विधानसभा चुनाव में मुकाबला इस बार केवल सियासी दलों के बीच नहीं बल्कि कई दिग्गज सियासी खानदानों के बीच भी होगा. चुनावों को लेकर कई राजनीतिक परिवारों में वर्चस्व की जंग छिड़ी हुई है. लिहाजा इन चुनावों में ‘अपने’ ही ‘अपनों’ को हाशिये पर धकेलने के लिए एड़ी चोटी का जोर भी लगाते हुए दिखाई देंगे. सियासत की चमक दमक और एक दूसरे के प्रति मन उठ रही टीस अब चुनावी मैदान में हिलोरें लेने लग गई है.
राजस्थान विधानसभा चुनाव में सियासत अब अपना असली रंग दिखाती नजर आयेगी. अपनों को ‘अपनों’ से लड़ाएगी. न भाई देखेगी और न पति. न जाने कितने ही सगे संबंधी एक दूसरे की हार और जीत का कारण बनेंगे. राजस्थान के सियासी दंगल में हालात कुछ ऐसे नजर आ रहे हैं. कांग्रेस नेता के खानदान की बहू रीटा सिंह ‘हाथ’ का साथ छोड़ अब जेजेपी के रथ पर सवार है. रीटा सिंह सीकर की जिला प्रमुख रह चुकी हैं. उनके पति वीरेंद्र सिंह वर्तमान में दांतारामगढ़ से कांग्रेस विधायक हैं. रीटा के ससुर यानी वीरेन्द्र के पिता नारायण सिंह दांतारामगढ़ के कई बार विधायक रह चुके हैं. उनकी पहचान खांटी नेता की है. वे पीसीसी चीफ भी रह चुके हैं.
पत्नी ट्रैक्टर और पति निकाल रहे हैं रथ यात्रा
रीटा अब कहीं ट्रैक्टर रैली निकाल रही हैं तो कहीं पदयात्रा कर रही है. वे जेजेपी के चुनाव चिन्ह ‘चाबी’ की लोकप्रियता बढ़ाने में जुटी हुई हैं. पूरे दांतारामगढ में जेजेपी का ट्रैक्टर घूम रहा है. वहीं वीरेंद्र सिंह रथयात्रा निकाल कर पत्नी के प्रचार अभियान की हवा निकालने में जुटे हैं. लेकिन जब लड़ाई अपनों से हो जाये तो चुनौतियां बढ़ ही जाती हैं. इसके चलते इस बार दांतारामगढ़ में मुकाबला चतुष्कोणीय होता दिख रहा है.
सीपीआई भी यहां आएगी चुनाव मैदान में
सीपीआई से पूर्व विधायक कामरेड अमराराम का चुनाव लड़ना तय है. पिछला चुनाव बहुत कम अंतर से हारी बीजेपी भी इस बार मैदान में पूरे दमखम से मैदान में उतरेगी. वहीं रीटा सिंह ने जेजेपी की चाबी से जीत उम्मीद के साथ ट्रैक्टर स्टार्ट कर अपने ही पति की मुश्किलें बढ़ा दी है. उनका इरादा हर हाल में पति के सामने मैदान में उतरने का है.
बहू ने डाला पति और ससुर को संकट में
रीटा ने जिस जेजेपी का दामन थामा है उसके संस्थापक अध्यक्ष अजय चौटाला ने नारायण सिंह को 1990 में दांतारामगढ से चुनाव हराया था. इसलिए बहू की जेजेपी में एंट्री नारायण सिंह और वीरेंद्र सिंह बर्दाश्त नहीं कर पा रहे हैं. घर की लड़ाई के सियासत के चौराहे पर आ जाने से कांग्रेस पार्टी परेशान है. नारायण सिंह का परिवार यहां से लगातार नौ चुनाव लड़ चुका है. नारायण सिंह ने दांतारामगढ से आठ चुनाव लड़े. वे यहां से दो बार हारे और छह बार जीते. एक चुनाव उनके बेटे ने जीता है. अब बहू के राजनीतिक प्रतिद्वंद्वियों की पार्टी में जाने से शेखावाटी के कद्दावर जाट परिवार की चिंता बढ़ा दी है.
पति-पत्नी आमने सामने होने की तैयारी में जुटे हैं
दांतारामगढ में जहां पति पत्नी आमने सामने होने की तैयारी में जुटे हैं तो वहीं सवाई माधोपुर की खंडार विधानसभा सीट पर भी मुकाबला रोचक होने के आसार हैं. यहां चार बार के विधायक और पूर्व में कैबिनेट मंत्री रह चुके अशोक बैरवा के सामने उनके ही भाई सुनील तिलकर टिकट की राह में रोड़ा बनकर खड़े हैं. सुनील तिलकर खुलकर अपने भाई के खिलाफ मोर्चा खोल रहे हैं. उन्हें नाकारा और निष्क्रिय विधायक करार देकर कांग्रेस का टिकट हासिल करने की जद्दोजहद कर रहे हैं.
छोटे भाई ने बड़े भाई के खिलाफ छेड़ी जंग
बड़ा भाई अशोक लगातार विधायक बनता गया तो छोटे भाई से रहा नहीं गया. उसने सवाई माधोपुर से कांग्रेस के सभापति की टिकट मांगी. लेकिन जब अशोक बैरवा टिकट नहीं दिला पाये तो छोटे भाई सुनील ने अपने बड़े भाई के खिलाफ विद्रोह कर दिया. छोटे बेटे को पिता का भी साथ मिल गया है. बाप बेटे की जोड़ी अब विधायक अशोक बैरवा के टिकट पर संकट खड़ा कर सकती है.
राजनीति में कामयाबी की भाषा ही स्वीकार की जाती है
सियासत पर बाजार हावी है. इसलिए रिश्ते नाते सब गौण हैं. राजनीति में कामयाबी की भाषा ही स्वीकार की जाती है. कटुता और गलाकाट प्रतिस्पर्धा के बीच हिलोरें लेती महात्वाकांक्षा ने रिश्तों को खोखला कर दिया है. रिश्ते अब कंज्यूमेबल है और डिस्पोजल हो गए हैं. इसलिए सात फेरे लेकर जिंदगीभर साथ रहने की कसमें खाने वाले पति पत्नी को सियासत की चमक दमक एक दूसरे के खिलाफ खड़ा कर रही है. वहीं घर आंगन में बचपन से लेकर जवानी तक साथ पले बढ़े भाई ही अपने भाई को हराने के सपने देख रहे हैं. इस चुनाव में सियासत का यही चेहरा दिखाई देगा.
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FIRST PUBLISHED : October 7, 2023, 20:08 IST