कितना ताकतवर होता है चुनाव आयोग, चुनावों में हासिल होते हैं इसे कौन से अधिकार

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हाइलाइट्स

हाल के बरसों में निष्पक्ष और पारदर्शी चुनावों के लिए चुनाव आयोग जिला प्रशासन के अधिकारियों की जवाबदेही तय करने लगा है
चुनाव के पहले कई बार जिला प्रशासन के अधिकारियों के स्थानों में बदलाव की जरूरत पड़े तो ये काम भी आयोग करने लगा है

05 राज्यों में चुनाव की घोषणा होने के साथ ही इन पांचों राज्यों में सरकार और प्रशासन के कामकाज पर भारतीय चुनाव आयोग की नजर शुरू हो जाती है. इस दौरान चुनाव आयोग की अनुमति के बगैर ना तो वो कोई तबादला कर सकते हैं और ना किसी नए काम की शुरुआत. एक तरह से राज्य सरकार की मशीनरी चुनाव आयोग के प्रति जवाबदेह हो जाती है. जानते हैं कि भारतीय चुनाव आयोग जैसी संस्था कैसे बनी. ये क्या करती है.

26 जनवरी 1950 को भारत में गणतंत्र लागू होने के एक दिन पहले ही भारतीय निर्वाचन आयोग (Election Commission of India) की स्‍थापना कर दी गई थी. भारतीय निर्वाचन आयोग यानी चुनाव आयोग भारत में स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव कराने वाली एक स्वायत्त और अर्ध-न्यायिक संस्था है. यही संस्‍था देशभर में हमेशा  लोकसभा, राज्यसभा, राज्य विधानसभाओं, राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति के चुनाव का संचालन करता है.

05 राज्यों यानि राजस्थान, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़. तेलंगाना और मिजोरम के चुनाव कराने वाले भारतीय चुनाव आयोग के मुख्य चुनाव आयुक्त राजीव कुमार हैं. जबकि दो अन्य चुनाव आयुक्त अनूप मंडल और अरुण पांडेय हैं.

जब चुनाव आयोग गठित हुआ तो तब इसकी संचरना ऐसी नहीं थी. जानते हैं चुनाव आयोग का अब तक का पूरा इतिहास.

चुनाव आयोग की स्‍थापना व संरचना
किसी देश में लोकतंत्र होने का प्रतीक है वहां जनता के द्वारा चुने प्रतिनिधियों का शासन. इसलिए भारत में लोकतंत्र की स्‍‌थापना से पहले उस संस्‍थान की स्‍थापना की गई जो भारत में जनता के प्रतिनिधियों के चुनने के लिए जिम्मेवार होगी. तब इसकी संरचना के अनुसार साल 1950 से 15 अक्टूबर, 1989 तक मुख्य निर्वाचन आयुक्त ही इसका नेतृत्व करते थे. उनके साथ एक एकल-सदस्यीय निकाय हुआ करता था. पहले चुनाव आयुक्त सुकुमार सेन थे.

भारत के पहले मुख्य निर्वाचन आयुक्त सुकुमार सेन, जिन्होंने देश में पहले दो आम चुनाव कराए और काफी हद तक इस संस्था की संरचना और कामों को लेकर सबसे अहम काम किया. (फाइल फोटो)

अक्टूबर, 1989 में चुनाव आयोग की संरचना में बदलाव किया गया. इसके बाद चुनाव आयोग तीन सदस्यीय निकाय बना. जल्द ही यह प्रस्ताव रद्द हो गया. फिर एक ही नेतृत्वकर्ता की टीम काम करने लगी. तीन साल की उठा-पटक के बाद अंततः अक्टूबर 1993 से फिर से तीन सदस्यीय व्यवस्‍था अमल में लाई गई. तब से अब तक यही व्यवस्‍था काम कर रही है. चुनाव आयोग देशभर में अपने राज्य निर्वाचन आयोगों के जरिए काम करता है और चुनावों को अंजाम देता है.

चुनाव आयोग की ताकत
चुनाव संबंधी नियमों-कानूनों फैसलों इत्यादि के मामलों में चुनाव आयोग केवल संविधान द्वारा स्‍थापित निर्वाचन विधि के ही अधीन होता है. एक तरह से ये स्वायत्त संस्था है. संविधान के अनुच्छेद 324 से 329 तक चुनाव आयोग और सदस्यों की शक्तियों, कार्य, कार्यकाल, पात्रता आदि से संबंधित हैं

खुद सुप्रीम कोर्ट चुनाव आयोग के बारे में कहता है, “वह एकमात्र अधिकरण है जो चुनाव कार्यक्रम निर्धारित करे, चुनाव करवाना केवल उसी का कार्य है.” एक अन्य जनप्रतिनिधित्व एक्ट 1951 के अनुसार, राष्ट्रपति किसी भी राज्यपाल को निर्वाचन अधिसूचना जारी करने का अधिकार दे सकते हैं. लेकिन इसके लिए उन्हें निर्वाचन आयोग से सलाह लेनी होगी और उसके निर्देशन के अनुरूप ही निर्देश जारी करने होंगे.

ये भारतीय चुनाव आयोग का मुख्यालय है, जहां से देश के चुनावों की तैयारियां, नियमन और अन्य निर्वाचन संबंधी महत्वपूर्ण कार्य होते हैं. साथ ही संबंधित मामलों में फैसले लिये जाते हैं. (विकी कामंस)

आदर्श आचार्य संहिता में क्या मिलते हैं अधिकार
चुनाव आयोग किसी भी चुनाव की घोषणा के साथ ही उस चुनाव से संबंधित सीमाओं के भीतर आदर्श आचार संहिता लागू करने का अधिकार रखता है. संविधान में चुनाव आचार्य संहिता का उल्लेख नहीं है. लेकिन निष्पक्ष और स्वतंत्र चुनाव के लिए आयोग इसे लागू करता है.

इसमें चुनाव प्रचार, प्रचार पर खर्च होने वाले पैसे, भाषण में संयम से लेकर उनके प्रचार जत्‍थे तक पर नजर रखी जाती है. इसी के तहत विजयी उम्मीदवारों की सूची राज्यों को सौंपने का भी कार्य आता है. यानी कि चुनाव आयोग ने अपने कामकाज के लिए अपनी एक गाइडलाइन बना रखी है. इसके उल्लंघन पर चुनाव आयोग उचित कार्रवाई करता है. इस दौरान सरकारी मशीनरी उसके साथ तालमेल पर काम करती है. राज्य सरकार या सरकार कोई ऐसा काम नहीं कर सकती, जो चुनाव आचार संहिता का उल्लंघन करता हो, ऐसा होने पर चुनाव आयोग तुरंत इस पर रोक लगा देता है. कुछ स्थितियों में चुनाव आय़ोग राज्य में अधिकारियों के तबादले भी कर सकता है.

मुख्य चुनाव आयुक्त का कार्यकाल और उम्र
भारत में मुख्य चुनाव आयुक्त, राष्ट्रपति द्वारा नियुक्त किए जाते हैं. नियमानुसार कोई भी चुनाव आयुक्त अधिकतम अपनी आयु के 65वें साल तक पद पर रह सकता है, चाहे उसका कार्यकाल अभी बाकी हो. 65 वर्ष की आयु पूरी कर करने वाला शख्स मुख्य चुनाव आयुक्त नहीं बन सकता. जबकि एक मुख्य चुनाव आयुक्त अधिकतम छह वर्ष तक ही पद पर रह सकता है. मुख्य चुनाव आयुक्त हटाने के लिए महाभियोग ही एकमात्र उपाय है.

Chief Election Commissioner Rajiv Kumar

राजीव कुमार देश के 25वें मुख्य चुनाव आयुक्त हैं. उन्होंने पांच राज्यों में चुनावों की घोषणा की. (न्यूज 18)

अब तक मुख्य चुनाव आयुक्तों की सूची
अब तक देश में 25 मुख्य चुनाव आयुक्त बन चुके हैं. मौजूदा मुख्य चुनाव आयुक्त उस कड़ी में 25वें मुख्य चुनाव आयुक्त हैं. अब तक ये लोग आजादी के बाद से देश के मुख्य चुनाव आयुक्त रहे हैं.
सुकुमार सेन
केवीके सुंदरम
एसपी सेन वर्मा
डॉ. नगेन्द्र सिंह
टी. स्वामीनाथन
एसएल शकधर
आरके त्रिवेदी
आरवीएस शास्त्री
वीएस रमादेवी
टीएन शेषन
एमएस गिल
जेएम लिंगदोह
टीएस कृष्णमूर्ति
बीबी टंडन
एन गोपालस्वामी
नवीन चावला
शाहबुद्दीन याकूब कुरैशी
वीएस संपत
एचएस ब्रह्मा
नसीम जैदी
अचल कुमार ज्योति
ओम प्रकाश रावत
सुनील अरोड़ा
सुशील चंद्रा
राजीव कुमार

कहां है मुख्यालय
निर्वाचन आयोग का सचिवालय नई दिल्ली में स्थित है. इसमें करीब 300 लोगों का स्टाफ है. आमतौर पर मुख्य चुनाव आयुक्त और उसके साथ दोनों चुनाव आयुक्त IAS रैंक के अधिकारी होते हैं.उन्हें इन्हें भारत के सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीशों के समकक्ष दर्जा प्राप्त होता है.

कितना होता है मुख्य चुनाव आयुक्त का वेतन
मुख्य चुनाव आयुक्त और अन्य दो चुनाव आयुक्तों का वेतन ढाई लाख रुपए महीना होता है. इसके अलावा उन्हें कई भत्ते और सरकारी आवास मिलता है.

चुनाव आयोग के मुख्य काम क्या होते हैं
– भारत में लोकसभा, राज्यसभा, राज्य विधानसभाओं, राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति के चुनाव की संपूर्ण प्रक्रिया को अंजाम देना, ये उसकी देखरेख, निर्देशन और नियंत्रण में ही होते हैं
– आम चुनाव या उप-चुनाव कराना और इसका कार्यक्रम बनाना
– वोटर लिस्ट तैयार करना और मतदाता पहचान पत्र (EPIC) जारी करना
– मतदान एवं मतगणना केंद्रों के लिये स्थान तय करना, मतदाताओं के लिये मतदान केंद्र तय करना, मतदान एवं मतगणना केंद्रों में सभी प्रकार की आवश्यक व्यवस्थाएं और संबंधित कामों का प्रबंधन करना
– राजनीतिक दलों को मान्यता प्रदान देना और इससे संबंधित मामलों और विवादों को देखना
-निर्वाचन के बाद अयोग्य ठहराए जाने के मामले में आयोग के पास संसद और राज्य विधानसभाओं के सदस्यों की बैठक हेतु सलाहकार क्षेत्राधिकार
– यह राजनीतिक दलों और उम्मीदवारों के लिये चुनाव में ‘आदर्श आचार संहिता’ लागू कराना, ताकि कोई अनुचित कार्य न करे या सत्ता में मौजूद लोगों द्वारा शक्तियों का दुरुपयोग न किया जाए
– हाल के बरसों में पारदर्शी और निष्पक्ष चुनाव सुनिश्चित करने के लिए चुनाव आयोग शिकायतों के आधार पर चुनाव के दौरान जिला प्रशासन के अधिकारियों के तबादले भी करना लगा है
– सभी राजनीतिक दलों के और उसके उम्मीदवारों की खर्च की सीमा तय करना

Tags: 5 State Assembly Elections in 2023, Assembly Elections 2023, Election Commission of India

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