मनोज कुमार पांडेय को उनकी कहानियों के लिए 2021 में ‘स्वयं प्रकाश स्मृति सम्मान’, 2019 में ‘वनमाली युवा कथा सम्मान’, 2018 में ‘राम आडवाणी पुरस्कार’, 2017 में ‘रवींद्र कालिया स्मृति कथा सम्मान’, 2015 में ‘स्पंदन कृति सम्मान’, 2014 में ‘भारतीय भाषा परिषद का युवा पुरस्कार’, 2011 में ‘मीरा स्मृति पुरस्कार’, 2010 में ‘विजय वर्मा स्मृति सम्मान’ और 2006 में ‘प्रबोध मजुमदार स्मृति पुरस्कार’ से सम्मानित किया जा चुका है.
प्यार जब जीवन और कविता, दोनों जगह दुर्लभ हो रहा हो, दोनों ही जगह जब समाज और व्यवस्था में उग रहीं विषैली, प्रेमविरोधी प्रतिक्रियाएं मुख्यधारा हो रही हों, तब ‘प्यार करता हुआ कोई एक’ कविता संग्रह राहत, और गहरी आश्वस्ति का स्रोत मालूम होता है. यह संग्रह उन प्रेमियों के लिए है जिनसे जाने-अनजाने उनका प्रेम खो गया है, और दुखद यह है कि आज के समय में जीनेवाले अधिकतर लोग इस श्रेणी में आते हैं. इंसान कभी प्रेम को समझ नहीं पाता और कभी उसे संभाल नहीं पाता.
इस संग्रह की कविताएं उस हर व्यक्ति के लिए हैं, जिनका दिल प्रेम में धड़कता है, धड़क चुका है या फिर धड़कना चाहता है. इस संग्रह की कविताएं प्रेम की उस खाली जगह से उद्भूत हुई हैं जहां से अभी-अभी उठकर कोई गया है. बीती हुई नजदीकियों के चमकीले कणों से दमकती ये कविताएं विछोह के असीम पठार पर प्रेम के सबसे गहन सत्य की खोज में भटकती हुई प्रेम की कीमत समझाती हैं. मनोज की कविताएं बताती हैं कि प्रेम जब होता है तब भी, और जब नहीं होता तब भी, बेशकीमती है. प्रेम मनुष्य को हर रूप में ज्यादा मानवीय और ज्यादा संवेदनशील बनाता है.
ये कविताएं कोंचकर पूछती हैं कि ‘मजे से मरे हुए हमें कितनी सदियां बीत गई हैं; कि कितना वक्त हो गया है किसी की तलाश में भटककर खुद से जा मिले हुए. ये कविताएं प्रेम के अभाव में जीने के अभ्यास को तोड़ती हैं और वियोग की अलग-अलग कंदराओं से आहों की तरह निकली ये पंक्तियां पुन: प्रेम की अबूझ दुनिया में जाने को उकसाती हैं. प्रस्तुत हैं काव्य-संग्रह ‘प्यार करता हुआ कोई एक’ से पांच चुनिंदा कविताएं.
1)
और कुछ भी नहीं है तू
तू एक महक है बस
जो मेरे भीतर बस गई है हमेशा के लिए
जिसे मैं न जाने कहां खोजता रहता हूं
एक छुअन भर है
मेरे समूचे अस्तित्व को छूती हुई
ये छुअन दौड़ती है मेरे खून में हमेशा
तू सिर्फ एक रंग है
जिसके ऊपर कोई रंग नहीं चढ़ता
कितने भी रंग आएं जिन्दगी में
तुझमें ही रंगा रहूंगा
तू एक चेहरा भर है
2)
तेरा बदन एक पूरी पृथ्वी है
तेरा बदन एक पूरी पृथ्वी है
जिस पर उगी हुई घास हूं मैं
जहां दौड़ते हैं मेरे मन के घोड़े
मुझे ही चरते हुए
दो पहाड़ हैं एक दूसरे के समानान्तर
अपनी ऊंचाइयों से सम्मोहित करते हुए
जिनके शिखर पर छलकता है अमृत
नीचे एक मैदान है सुस्ताने के लिए
जिसके थोड़ा और नीचे एक दरिया बहता है
सुख के महासागर की तरफ जाती हुई
जहां पनपता है अमर जीवन
एक जंगल है न जाने कहां तक फैला हुआ
जिसके हरे अंधेरे में खोया हुआ हूं मैं
3)
तेरी महक
तेरी महक जो उड़ती है मेरे चारों ओर
उसमें भला कितनी ऑक्सीजन है
वो वोदका जो मैंने तुम्हारे साथ में पी है
उसका रंग मेरे आंसुओं से मिलता है
मैं कहीं भी चलता हूं पहुंचता हूं हर हाल में तुम तक
तुम जो हर कदम के साथ जाती हो मुझसे और दूर
4)
तुम्हारे बारे में कुछ नहीं कहूंगा
हवा को इस बात का पता भी है कि नहीं
कि उसमें चिड़िया रहती हैं
पानी इस बात को जानता है या नहीं
कि वह घर है मछलियों का
और तुम तो यकीनन नहीं ही जानती होगी
कि यह तुम हो जिसके भीतर बन गया है मेरा बसेरा
हवाएं तेज होती हैं तो गिरते हैं पेड़ मरती हैं चिड़ियां
पानी मौज में आता है तो बहुत सारी मछलियों को
उछाल देता है अपने से बाहर
तुम्हारे बारे में कुछ नहीं कहूंगा
5)
चुप्पी
चुप्पी कहां से आती है इतनी कि
बोलने को शब्द नहीं बचता कोई
वाक्य टूट टूट जाते हैं
गायब हो जाती है दो शब्दों के बीच की जगह
जो उनमें अर्थ पैदा करती है
तो होता यह है कि कई बार बोलता हूं
कोई कुछ समझ नहीं पाता इसलिए चुप रहता हूं
समय की मनोरमता इससे कम नहीं होती
हरा हरे की तरह ही दिखाई देता है
फूलों में रंग महक और कोमलता तब भी बनी रहती है
स्वाद बचा रहता है पकवानों में
हवा चलती रहती है पानी बहता रहता है
इतना शोर है चुप्पी के चारों ओर
भीतर की आवाजों का जिक्र नहीं करूंगा
जो बाहर आती हैं तो इतना रूप बदल कर आती हैं
कई बार मैं भी पहचान नहीं पाता
यह उन्हीं गुम हुई आवाजों की कविता है
जिनका पता ठिकाना मैं ढूंढ़ता रहता हूं
अपनी जिन्दगी की याद में मरता हुआ
कविता संग्रह : ‘प्यार करता हुआ कोई एक’
लेखक : मनोज कुमार पांडेय
प्रकाशक : राजकमल पेपरबैक्स
मूल्य : 160 रुपए
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Tags: Book, Hindi Literature, Hindi poetry, Hindi Writer, Poem
FIRST PUBLISHED : October 10, 2023, 17:31 IST