नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट की दो-न्यायाधीशों की पीठ बुधवार को एक महिला की 26-सप्ताह की गर्भावस्था को चिकित्सकीय रूप से समाप्त करने (Medical Termination of Pregnancy) के अनुरोध पर किसी समझौते पर पहुंचने में विफल रही. इस मामले ने अदालत के सामने एक महत्वपूर्ण चिकित्सकीय प्रश्न खड़ा कर दिया कि क्या एक जीवित भ्रूण को समाप्त किया जाना चाहिए, या अंतिम चरण में गर्भपात के मामलों में भ्रूण को लाइफ सपोर्ट प्रदान किया जाना चाहिए.
वर्तमान मामला एक 27 वर्षीय महिला से जुड़ा है, जिसके पहले से ही दो बच्चे हैं और वह प्रसवोत्तर अवसाद (Postpartum Depression) से पीड़ित है. इस केस में छह सदस्यीय मेडिकल बोर्ड ने 6 अक्टूबर को तीन कारणों का हवाला देते हुए गर्भपात के खिलाफ सलाह दी थी. सबसे पहले, प्रेगनेंसी के एडवांस स्टेज में गर्भपात प्रसवोत्तर मनोविकृति का कारण बन सकता है. यह एक गंभीर स्थिति होती है, जिसमें गर्भवती महिला को मतिभ्रम और भ्रम का अनुभव होता है.
दूसरा, मां (याचिकाकर्ता) को अपनी पिछली दो गर्भावस्थाओं के दौरान सिजेरियन सेक्शन से गुजरना पड़ा था, जिससे जटिलताओं का खतरा बढ़ गया था. और, सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि गर्भ में पल रहा बच्चा बिल्कुल स्वस्थ है और उसके ‘जीवित रहने की उचित संभावना’ है. हालांकि, 9 अक्टूबर को बेंच ने गर्भपात की इजाजत दे दी थी. लेकिन बुधवार को, मेडिकल बोर्ड के सदस्यों में से एक द्वारा अदालत से स्पष्टीकरण मांगे जाने के बाद, दो-न्यायाधीशों की पीठ महिला के गर्भपात के अनुरोध के संबंध में किसी समझौते पर पहुंचने में विफल रही.
एम्स मेडिकल बोर्ड के 6 सदस्यों में से एक डॉक्टर ने पूछे तीन सवाल
वर्तमान मामले में, डॉक्टर (मेडिकल बोर्ड के सदस्यों में से एक) द्वारा मांगे गए स्पष्टीकरण में 4 प्रमुख चिकित्सकीय मुद्दे उठाए गए हैं. सबसे पहले, डॉक्टर ने इस बात पर प्रकाश डाला है कि बच्चा वर्तमान में वॉयबल है, जिसका अर्थ है कि उसमें जीवन के लक्षण दिखाई देंगे और उसके जीवित रहने की प्रबल संभावना है. इसलिए, डॉक्टर ने इस पर निर्देश मांगा है कि क्या भ्रूणहत्या (भ्रूण की धड़कनों को रोकना), गर्भपात से पहले किया जा सकता है? डॉक्टर ने लिखा, ‘हम यह प्रक्रिया उस भ्रूण के लिए करते हैं जिसका विकास असामान्य है, लेकिन आमतौर पर सामान्य भ्रूण में नहीं किया जाता है.’
दूसरा, डॉक्टर ने भ्रूण हत्या न करने की स्थिति में समस्याओं पर प्रकाश डाला है. डॉक्टर ने कहा है कि एक बच्चा जो समय से पहले पैदा हुआ है और जन्म के समय कम वजन वाला है, उसे गहन देखभाल इकाई में लंबे समय तक रहना होगा, जिसमें ‘तत्काल और दीर्घकालिक शारीरिक और मानसिक विकलांगता की उच्च संभावना होगी, जो बच्चे के जीवन की गुणवत्ता को गंभीर रूप से खतरे में डाल देगा. ऐसे परिदृश्य में, एक निर्देश दिए जाने की आवश्यकता है कि बच्चे के साथ क्या किया जाना है.’
मेडिकल बोर्ड के सदस्य ने आगे कहा, ‘अगर माता-पिता बच्चे को रखने के लिए सहमत हो जाते हैं तो इससे दंपत्ति पर बड़ा शारीरिक, मानसिक, भावनात्मक और वित्तीय प्रभाव पड़ेगा.’ तीसरा, डॉक्टर ने इस बात पर प्रकाश डाला है कि ‘यदि मामले को एडॉप्टेशन के नजरिए से देखा जाना है, तो प्रक्रिया को स्पष्ट रूप से बताया जाना चाहिए. यह भी ध्यान में रखना होगा कि पिछले दो बच्चों की डिलीवरी बाद जो परिणाम हुए, वही इस बार की डिलीवरी के साथ भी हो सकते हैं.’ इस बीच, विशेषज्ञों ने इस बात पर प्रकाश डाला कि सामान्य व्यवहार में भ्रूण के हृदय को रोकने के लिए सेलाइन इंजेक्शन दिया जाता है, आमतौर पर ऐसे मामलों में जहां जुड़वा बच्चों में से एक का विकास ठीक से नहीं हो रहा है और दूसरे भ्रूण को भी नुकसान हो सकता है.
मामले में वर्तमान मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेगनेंसी एक्ट क्या कहता है?
वर्तमान मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेगनेंसी कानून 20 सप्ताह तक गर्भपात की अनुमति देता है, अगर महिला की जान को खतरा हो, उसके शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य पर असर पड़ता हो, अगर भ्रूण में असामान्यताएं हों या गर्भनिरोधक की विफलता के कारण गर्भावस्था हुई हो. यौन उत्पीड़न या अनाचार से पीड़ित महिलाओं, नाबालिगों, शारीरिक या मानसिक विकलांगता वाली महिलाओं या वैवाहिक स्थिति में बदलाव सहित अन्य महिलाओं को दो डॉक्टरों की राय पर 24 सप्ताह तक गर्भपात की अनुमति दी जा सकती है. मेडिकल बोर्ड की सलाह पर इस अवधि के बाद भी गर्भपात की अनुमति दी जा सकती है. महिला, जिसने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की है, वह पीठ के समक्ष दृढ़ रही कि वह अपनी बीमारी के चलते गर्भावस्था को जारी नहीं रखना चाहती. उसने सुप्रीम कोर्ट में अपने स्वास्थ्य, दो बच्चों की देखभाल करने में असमर्थता और घर की वित्तीय स्थिति ठीक नहीं होने का हवाला दिया है.
जस्टिस बीवी नागरत्ना और जस्टिस हिमा कोहली के अलग-अलग विचार
चार महिलाओं- दो न्यायाधीशों, एएसजी और गर्भवती महिला- की विभिन्न भावनाओं की परस्पर क्रिया से उभरते हुए न्यायमूर्ति हिमा कोहली ने कहा कि उनकी न्यायिक अंतरात्मा उन्हें एक व्यवहार्य और स्वस्थ भ्रूण के दिल को रोकने की अनुमति नहीं देगी. उन्होंने पूछा, ‘कौन सी अदालत एक जीवित भ्रूण के दिल की धड़कन रोकने का निर्देश दे सकती है?’ उन्होंने अपनी रिपोर्ट में भ्रूण की स्थिति के बारे में पूरे तथ्य नहीं देने के लिए एम्स मेडिकल बोर्ड को दोषी ठहराया. इस प्रकार इस मुद्दे को पूरी तरह से विवाहित महिला की पसंद की स्वायत्तता के आधार पर तय करने के लिए अदालत पर छोड़ दिया गया.
लेकिन न्यायमूर्ति बीवी नागरत्ना, जो 2027 में पहली महिला सीजेआई के रूप में पदभार संभालेंगी, ‘महिला की पसंद की स्वायत्तता का सम्मान’ करने पर दृढ़ रहीं. सोमवार के आदेश को वापस लेने के लिए मौखिक अनुरोध के साथ मंगलवार को सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ के पास जाने के लिए एएसजी ऐश्वर्य भाटी को दोषी ठहराने से पहले उन्होंने कहा, ‘याचिकाकर्ता द्वारा किए गए ठोस निर्णय को ध्यान में रखते हुए, मुझे लगता है कि उनके फैसले का सम्मान किया जाना चाहिए.’ वास्तव में, ऐश्वर्य भाटी ने न्यायमूर्ति हिमा कोहली के समक्ष भ्रूण की स्थिति का उल्लेख किया था, जिन्होंने सुझाव दिया था कि वह इस मामले का उल्लेख सीजेआई के समक्ष करें.
न्यायमूर्ति बीवी नागरत्ना ने आगे कहा, ‘यह ऐसा मामला नहीं है जहां एक वॉयबल बच्चे के जन्म या अजन्मे होने के सवाल पर वास्तव में विचार किया जाना है, जब याचिकाकर्ता के हित को अधिक प्राथमिकता दी जानी है. जिस सामाजिक-आर्थिक स्थिति में याचिकाकर्ता को रखा गया है, तथ्य यह है कि उसके पहले से ही दो बच्चे हैं, दूसरा बच्चा केवल एक वर्ष का है, और तथ्य यह है कि उसने दोहराया है कि उसकी मानसिक स्वास्थ्य स्थिति और वह जो दवाएं ले रही है, वह सही नहीं है कि उसे गर्भावस्था जारी रखने की अनुमति दें.’ गर्भावस्था को समाप्त करने की अनुमति देने के पहले के फैसले पर कायम रहते हुए, न्यायमूर्ति नागरत्ना ने कहा, ‘मुझे लगता है कि अदालत को उसके (गर्भवती महिला) फैसले का सम्मान करना चाहिए. अदालत यहां याचिकाकर्ता के निर्णय के स्थान पर अपना निर्णय देने के लिए नहीं है.’
अब यह मामला सीजेआई जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ के पास पहुंचा
दोनों जजों को मामले में किसी सहमति पर नहीं पहुंचता देखते हुए, न्यायमूर्ति हिमा कोहली की अगुवाई वाली पीठ ने रजिस्ट्री से महिला की याचिका पर फैसला करने के लिए एक उचित पीठ गठित करने के लिए मामले को सीजेआई के समक्ष रखने को कहा. सोमवार और बुधवार दोनों दिन, एएसजी ऐश्वर्य भाटी ने अदालत को बार-बार सुझाव दिया कि यदि महिला आठ से नौ सप्ताह तक गर्भवती रहती है, तो उसके पैदा होने वाले बच्चे की देखभाल सरकार द्वारा की जाएगी और उसे सेंट्रल एडॉप्टेशन रिसोर्स अथॉरिटी (CARA) के माध्यम से गोद लेने के लिए रखा जाएगा.
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Tags: Petition in Supreme Court, Pregnant Women, Supreme Court
FIRST PUBLISHED : October 12, 2023, 08:25 IST