Sukhee Movie Review: शिल्पा शेट्टी की इस फिल्‍म में कुछ भी नहीं है नया, निराश कर देगा क्लाईमेक्स

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नई दिल्ली: आमतौर पर मिडिल क्लास हाउसवाइफ के बारे में अक्सर यही सोचा जाता है, शादी के बाद उनकी जिंदगी पूरी तरह बदल जाती हैं. अपने परिवार की जिम्म्दारियों में उलझी हाउसवाइफ अपने कई सपनों को मारकर अपने पति और बच्चों की जरूरतों को पूरा करती हैं. शिल्पा शेट्टी की फिल्म ‘सुखी’ में भी इस तरह की कहानी दिखाई गई है. अपनी रोजमर्रा की जिंदगी से तंग आई सुखी जब स्कूल रीयूनियन में शामिल होने का मौका मिलता है तो उसे सेलफिश समझा जाने लगता है.

महिलाओं के आत्मसम्मान की भावना और उनकी आजादी को द‍िखाती कई फिल्‍में हम स‍िनेमा में पहले ही देख चुके हैं. लेकिन स‍िनेमा में अक्‍सर नए पैकेट में पुराने माल को बेचा जाता रहा है और दर्शकों को पसंद भी खूब आता है. पर न‍िर्देशक सोनल जोशी की इस कहानी का पैकेट भी पुराना है और माल भी. ये फिल्म फेमिनिजम और सेल्फलव की कहानी कहना चाहती है. लेकिन कई जगह अपनी बात कहने में नाकामयाब साबित होती है. निर्देशन की दुनिया में कदम रखने वाली नवोदित निर्देशक सोनल जोशी ने एक साधारण कहानी को बुना है. लेकिन इस कहानी में कुछ भी ऐसा नया या अनोखा नहीं है, जो आपको सुख दे. इस फिल्‍म की कहानी ऐसी कई फिल्मों की कहानियों का मिश्रण है जो हम पहले भी देख चुके हैं.

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सोनल जोशी के निर्देशन में बनी फिल्म ‘सुखी’ की कहानी चार महिला पात्र के इर्द-गिर्द घूमती हैं.

क्या कहती है कहानी
फिल्म की कहानी एक पंजाबी लड़की सुखप्रीत कालरा उर्फ ​​सुखी की है जो अपने माता-पिता की मर्जी के खिलाफ जाकर शादी कर लेती है. शादी के बाद बच्चे और पति की हर जरूरत को पूरा करते हुए वह अपने बारे में सोचना ही भूल जाती हैं. लेकिन इन सब मजबूरियों में उलझी सुखी को जब अचनाक स्कूल रीयूनियन में शामिल होने का मौका मिलता है तो उसकी सोच पूरी तरह बदल जाती हैं. वह अपने लिए कुछ टाइम निकालना चाहती हैं और जब वह अपने पति से जाने की बात करती हैं तो सेलफिश समझा जाने लगता है. इसके बाद सुखी कैसे अपने फ्रेंड्स के साथ ट्रीप पर निकल जाती है और इसके बाद उसके परिवार को किन परेशानियों का सामना करना पड़ता है. ये सब आप फिल्म में देखिएगा.

फिल्म की कमजोर कड़ी
प्यार, पछतावा, माता-पिता की मर्जी के खिलाफ शादी, मां होने का फर्ज, एक मिडिल क्लास पंजाबी परिवार की बहू जहां पितृसत्तात्मक प्रकृति से नियमित बने हैं. जिंदगी में स्कूल रीयूनियन फिल्म में कुछ भी ऐसा नया नहीं है जिसे दर्शक पहली बार देख रहे हो फिल्म में नया क्या है? निर्देशक सोनल जोशी एक महिला होने के नाते जिस तरह महिलाओं के सुख-दुख और उनके जीवन में होने वाली कठिनाईयों को समझ सकती थीं, वैसा कुछ भी फिल्म में देखने को नहीं मिलता. ‘सुखी’ में महिलाओं की भावनाओं का कोई ऐसा पहलू नजर नहीं आया जो सिर्फ एक महिला लेखक या महिला निर्देशक समझ सकती हो.

दरअसल कई मौकोंं पर आप समझ ही नहींं पाते कि ‘सुखी’ क्‍या कहना चाहती है. ये एक अधेड़ कपल के बीच ठंड़ी पड़ी शादीशुदा ज‍िंदगी की कहानी है या एक हाउसफाइफ के कुछ भी कर जाने की कहानी… कई बार ये आपको लड़कियों के बीच वाली सेक्‍स-कॉमेडी लगने लगती है. एक सबसे अजीब चीज जो ट्रेलर से ही मेरे द‍िमाग में खटक रही है कि 34 साल की कुशा कपिला को 48 साल की श‍िल्‍पा के बचपन का दोस्‍त कैसे द‍िखाया जा सकता है.

सोनल जोशी ने इस फिल्म के जरिए एक ऐसा विषय उठाया जिसमें वह तय नियम से महिलाओं के मन की बात बताती है. लेकिन फिर भी उनका उठाया ये कदम लक्ष्यहीन लगता है. हालांकि फिल्म कहीं कहीं आपके दिल को छूती है लेकिन फिल्म का प्लॉट आपका पूरा मूड बर्बाद कर देता है. आखिर ऐसी फिल्म बनाई ही क्यों जाती जिसमें निर्देशक दर्शकों के लिए कुछ नया नहीं परोस सकते.

Sukhee Movie Review

कुशा कपिला इस फ‍िल्‍म में एक स‍िंगल मदर बनी हैं.

बात अगर फिल्म में सुखी का किरदार निभा रही शिल्पा शेट्टी की करें तो वह काफी एनर्जेटिक दिखी हैं वहीं कुशा ने फिल्म के जरिए अच्छी शुरुआत की है जो एक गर्व के साथ एक सिंगल मदर बनी नजर आई हैं. इनके अलावा पवलीन और दिलनाज ने भी अपने किरदारों के साथ न्याय किया है. हालांकि चैतन्य का किरदार थोड़ा बासी है लेकिन वह इसे कुछ हद तक विश्वसनीय बनाने की कोशिशों में जुटे नजर आते हैं. अमित उर्फ चमकदार का किरदार भी आपको एंटरटेन कर सकता है. थका देने वाली इस फिल्म में उनका राहत देने वाला है. हमारी तरफ से इस फ‍िल्‍म को 2 स्‍टार.

डिटेल्ड रेटिंग

कहानी :
स्क्रिनप्ल :
डायरेक्शन :
संगीत :

Tags: Entertainment news., Shilpa shetty

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