कोरोना लॉकडाउन: जिन्होंने किया नियमों का सख्त पालन, वे अब डिप्रेशन और एंग्जायटी के शिकार!- स्टडी

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Corona rules and lockdown: जिन लोगों ने कोरोना के दौरान लॉकडाउन और कोविड नियमों का सख्ती से पालन किया, उनमें से कई लोग डिप्रेशन, एंग्जायटी और जबरदस्त तनाव से जूझ रहे हैं. हाल ही में हुई एक स्टडी में यह पाया गया कि सरकार द्वारा लगाए गए लॉकडाउन और उससे जुड़े नियमों का जिन लोगों ने बेहद सख्ती से पालन किया, वे लंबे समय तक डिप्रेशन और स्ट्रेस की समस्याओं से जूझ रहे हैं. उनका मानसिक स्वास्थ्य उन लोगों के मुकाबले में ज्यादा खराब देखा गया है जो अपेक्षाकृत ‘केयरफ्री’ रहे.

बांगोर यूनिवर्सिटी के शिक्षाविदों ने इस बाबत की गई स्टडी में पाया कि महामारी की चपेट में आने पर जिन लोगों ने सरकारी प्रतिबंधों का सबसे अधिक बारीकी से पालन किया, उनके भीतर तनाव, चिंता और अवसाद के चपेट में आने की सबसे अधिक संभावना बनती है. इस शोध में पाया गया कि महामारी का आघात लोगों के मानसिक स्वास्थ्य पर तीन साल तक एकदम स्थायी तरीके से रहा. डॉ. मार्ले विलेगर्स और इस शोध में उनके सहयोगियों के मुताबिक, ‘जितना अधिक व्यक्तियों ने लॉकडाउन के दौरान स्वास्थ्य संबंधी सलाहों का पालन किया, लॉकडाउन के बाद उनकी सेहत उतनी ही खराब हुई.’

द गार्जियन में छपे इस शोध की रिपोर्ट के मुताबिक, कोविड की चपेट में आने का डर फायदे और नुकसान दोनों रूपों में साबित हुआ. उन्होंने कहा, इंफेक्शन को लेकर लोगों की चिंता बढ़ने से भले ही नियमों को प्रभावी ढंग से माना गया, लेकिन रिकवरी पर नकारात्मक परिणाम भी होता है. हालांकि ऐसा हरेक के मामले में नहीं पाया. केयरिंग, सेंसिटिव और दूसरों की जरूरतों को लेकर एलर्ट रहने वाले लोगों ने लॉकडाउन नियमों का पालन सख्ती से किया, ऐसा देखा गया. रिपोर्ट कहती है कि एजेंटिक पर्सनेलिटी, यानी ऐसे लोग जो खुद में अधिक आजाद सोच, अधिक कंपटीटिव हैं और अपनी जिन्दगी पर खुद का कंट्रोल बनाए रखने को पसंद करते हैं, उनमें इन सरकारी नियमों के पालन करने के बावजूद ये समस्याएं अपेक्षाकृत कम पाई गईं.

शोध में इस एंगल से देखा गया कि मार्च से सितंबर 2020 में पहले यूके-व्यापी लॉकडाउन के दौरान वेल्स में 1,729 लोग नियमों का कितना पालन कर रहे थे और इस साल फरवरी से मई के दौरान उनमें तनाव, चिंता और अवसाद के उपाय पाए गए. बांगोर यूनिवर्सिटी के इंस्टिट्यूट फॉर साइकोलॉजी ऑफ एलीट परफॉर्मेंस के एक अकादमिक विलेगर्स ने जो कहा, उसके मुताबिक लोगों को लॉकडाउन के नियमों का पालन करने के लिए तो प्रोत्साहन और मोटिवेशन दिया गया लेकिन इसके बाद के हालातों को हैंडल करने या समझने के लिए ऐसा कोई सरकारी अभियान नहीं चला. ऐसे में चिंता और तनाव कायम रही और एक प्रकार से मानसिक स्वास्थ्य को प्रभावित करती रही.

सेंटर फॉर मेंटल हेल्थ थिंकटैंक ने कहा कि यह चिंता की बात है कि जिन लोगों ने महामारी संबंधी प्रतिबंधों का पालन किया, उनका मानसिक स्वास्थ्य तीन साल बाद खराब होने की अधिक संभावना है. कुछ लोगों के लिए तो यह इसलिए भी बढ़ गया क्योंकि कई लोग इन नियमों का ऐसा पालन नहीं कर रहे थे. इसके मुख्य कार्यकारी एंडी बेल ने कहा.

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Tags: Depression, Lockdown, Mental Health Awareness

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