संजीवनी बूटी से कम नहीं है फरण…कोलेस्ट्रॉल करे कंट्रोल तो दिल के रोगों में कारगर; शरीर को रखे तंदुरुस्त

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कमल पिमोली/श्रीनगर गढ़वाल: हिमालयी क्षेत्रों में औषधियों का भंडार है. यहां कई ऐसी बेशकीमती जड़ी-बूटियां है, जोकि असाध्य रोगों में कारगर साबित होती हैं. ऐसा ही एक हिमालयी पौधा फरण है. हिमालयी क्षेत्रों में फरण (जम्बू) का प्रयोग भी खाने में तड़के के रूप में किया जाता है. हिमालयी क्षेत्रों में पाया जाने वाला फरण कई औषधीय गुणों से भरपूर है. भारत, पाकिस्तान, भूटान, नेपाल और तिब्बत के उच्च हिमालयी क्षेत्रों में उगने वाला औषधीय पौधा फरण कई बीमारियों में भी कारगर साबित होता है. यह हार्ट संबधी रोगों में भी लाभदयक है. जबकि इसका प्रयोग स्थानीय लोग पारंपरिक रूप से खाने में करते हैं. इसके साथ ही यह यूनानी और आयुर्वेदिक औषधि निर्माण मे भी एक मुख्य अवयव के रूप प्रयोग होता है.

बता दें कि भारतीय खानों में मसालों का विशेष महत्व है. आमतौर पर 100 से ज्यादा किस्म के मसाले प्रयोग में लाये जाते हैं. इसमें जीरा, धनिया, अमचूर, सौंफ, कलौंजी, विभिन्न किस्म की मिर्चें, कई तरह के नमक आदि शामिल हैं. जबकि फरण का प्रयोग भी मसालों के रूप में किया जाता है.

फरण के तेल पर किया जा रहा काम!
फरण पर काम कर रही उच्च शिखरीय पादप शोध केंद्र (हेप्रेक) की प्रोफेसर डॉ विजयलक्ष्मी ने बताया कि पहले इसे तड़के के रूप में प्रयोग किया जाता था, लेकिन अब दवा कंपनियों द्वारा इसका प्रयोग दवाईयों के निर्माण में भी किया जाता है. इसमें सल्फर कंटेनिंग कंपाउंड, फाइबर, एंटीआक्सीडेंट समेत कई मेडिसिनल प्रॉपर्टीज हैं. साथ ही बताया कि वह और ग्राफिक एरा यूनिवर्सिटी में कार्यरत डॉ प्रभाकर सेमवाल फरण को एक्सट्रेक्ट कर ऑयल निकालने के साथ इसके प्रयोग को लेकर काम कर रहे हैं. प्रोफेसर डॉ विजयलक्ष्मी के मुताबिक, अभी तक फरण के तेल पर काम नहीं हुआ है. इसके तेल में कौन से एक्टिव इंग्रिडेंट हैं, इसका पता चलने के बाद और काम किए जा सकते हैं.

फरण के मेडिसिनल लाभ
प्रोफेसर डॉ विजयलक्ष्मी ने बताया कि फरण मे सल्फर तत्व के मौजूद होने की वजह से यह ब्लड कोलेस्ट्रॉल को नियंत्रित करता है. साथ ही फरण पाचन क्रिया के लिए टॉनिक के रूप में भी मददगार है. शायद यही कारण है कि हिमालयी क्षेत्रों में रहने वाले लोग स्वस्‍थ और तंदुरुस्त रहते हैं. फरण में 4.26 प्रतिशत प्रोटीन, 0.1 प्रतिशत वसा, 79.02 प्रतिशत फाइबर समेत कार्बोहाइड्रेट, कैल्शियम, फास्फोरस, मैग्नीशियम और पोटेशियम की मात्रा पाई जाती है.

फरण की हो रही खेती
बहरहाल, गरीबों का तड़का कहे जाने वाले फरण की खेती उत्तराखंड के निति माणा घाटी, नंदप्रयाग समेत कुछ स्थानों पर व्यावसायिक रूप से की जाती है. फरण (जम्बू) को गढ़वाल के कुछ इलाकों में लादो के नाम से भी जाना जाता है. उच्च हिमालयी इलाकों में रहने वाली जनजातियां द्वारा फरण को सुखाने के बाद स्थानीय बाजारों में बेचा जाता है.

Disclaimer: इस खबर में दी गई दवा/औषधि और हेल्थ बेनिफिट रेसिपी की सलाह, हमारे एक्सपर्ट्स से की गई चर्चा के आधार पर है. यह सामान्य जानकारी है, न कि व्यक्तिगत सलाह. हर व्यक्ति की आवश्यकताएं अलग हैं, इसलिए डॉक्टर्स से परामर्श के बाद ही, कोई चीज उपयोग करें. कृपया ध्यान दें, Local-18 की टीम किसी भी उपयोग से होने वाले नुकसान के लिए जिम्मेदार नहीं होगी.

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