अर्पित बड़कुल/दमोह: गूलर के पेड़ से तो आप सभी परिचित होंगे. गूलर का पेड़ हिंदू धर्म में बड़ा ही पवित्र माना गया है. गूलर के फूल को लेकर भी ग्रामीण इलाकों में प्रचलित कहावत है. लेकिन, क्या आप जानते हैं, गूलर का फल भी बड़ा कमाल का है. यह फल औषधि की खान है. यह कई बीमारियों का इलाज करने में सक्षम है.
बुंदेलखंड क्षेत्र में गूलर को ऊमर के नाम से जाना जाता है. यह पेड़ औषधीय गुणों से भरपूर है. आयुर्वेद मे ऊमर के पेड़ को ही औषधीय गुणों की खान कहा गया है. इसमें एंटी-पायरेटिक, एंटी-इंफ्लामेटरी, एंटीमाइक्रोबियल, एंटीडायबिटिक आदि गुण होते हैं. इसके अलावा बवासीर, डायरिया और फेफड़ों की बीमारी के लिए यह रामबाण दवा है.
पेड़ से निकलने वाला दूध बवासीर में कारगर
गूलर का वानस्पतिक नाम ‘फिकस रेसमोसा’ है. इस पेड़ की शाखाओं से निकलने वाले सफेद दूध को ‘हेमदुग्धक’ कहा जाता है. इस सफेद दूध की 15 से 20 बूंदों को साफ पानी में मिलाकर पीने से रक्तार्श खूनी बवासीर और रक्त विकारों में लाभ मिलता है. इसके दूध का लेप बनाकर मसे पर लगाने से आराम मिलता है.
पेट के विकार हो जाएंगे दूर
अक्सर लोग अधिक खाना खा लेते हैं, जिस वजह से अपच की शिकायत हो जाती है. खट्टी डकार या फिर पेट दर्द, गैस, बदहजमी जैसी समस्या हो जाती है. इस समस्या से छुटकारा पाने के लिए गूलर के फल का इस्तेमाल करने से अल्सर या पेट संबंधी बीमारियों में राहत मिलती है. गूलर के फलों में सैकड़ों छोटे-छोटे कीड़े होने की वजह से इसे जंतुफल भी बोला जाता है.
कई विकारों को कर देगा दूर
आयुर्वेदिक चिकित्सक डॉ. दीप्ति नामदेव ने बताया कि हिंदू धर्म में गूलर के पेड़ को पूजनीय माना गया है. शादी-विवाह में मंडप के नीचे इस वृक्ष की लकड़ी का इस्तेमाल किया जाता है. वैसे औषधीय रूप में क्वाथ या किसी घाव में बैक्टीरिया न फैले उसके लिए भी इसका उपयोग किया जाता है. फीवर को दूर करने से लेकर छाती के रोगों के उपचार और फेफड़ों संबंधी बीमारी के इलाज में गूलर कारगर औषधी है.
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FIRST PUBLISHED : January 2, 2024, 16:47 IST