सोनिया मिश्रा/ चमोली. देवभूमि उत्तराखंड के पहाड़ी जिलों में कड़ाके की ठंड पड़ रही है. पर्वतीय क्षेत्रों में दिन में चटख धूप और सुबह-शाम कड़ाके की ठंड पड़ रही है. अब तो मैदान में भी लगातार तापमान गिर रहा है. तापमान में दर्ज की जा रही गिरावट से अब ठंड लगातार बढ़ रही है. वहीं, पहाड़ की चोटियों पर बर्फबारी से तापमान माइनस में पहुंच गया है. चमोली में कई झरने जम गए हैं.
पहाड़ी जिलों में कड़ाके की ठंड के बीच पहाड़ी लोगों ने अपनी जरूरत के हिसाब से कई प्रकार के स्वादिष्ट व्यंजनों को इजाद किया है. इनमें दाल भात की कापली/ काफली, फाणु, झ्वली (झांझ का साग), चैंसु (पिसी काली दाल), रैलू रायता, के साथ साथ कंडाली यानी बिच्छू घास का साग शामिल है, जिसे सर्दियों में बड़े चाव से खाया जाता है.
कंडाली घास के और भी नाम…
कंडाली की सब्जी और साग टेस्ट के साथ-साथ स्वास्थ्य के लिए काफी फायदेमंद है. इसकी तासीर गर्म होती है, इसलिए इसे पहाड़ में खूब चाव से खाया जाता है. कंडाली को देवभूमि के कुमाऊं मंडल में जहां बिच्छू घास, सिसूंण या सिसौंण कहा जाता है, वहीं गढ़वाल मंडल में इसे कंडाली कहा जाता है.
क्यों कहते हैं बिच्छु घास?
अर्टिकाकेई वनस्पति परिवार के इस पौधे का वानस्पतिक नाम अर्टिका पर्वीफ्लोरा है. बिच्छू घास की पत्तियों पर छोटे-छोटे बालों जैसे कांटे होते हैं. पत्तियों के हाथ या शरीर के किसी अन्य अंग में लगते ही उसमें झनझनाहट शुरू हो जाती है. जो कंबल से रगड़ने से दूर हो जाती है. इसका असर बिच्छु के डंक से कम नहीं होता है. इसीलिए इसे बिच्छु घास भी कहा जाता है.
कैसे बनता है कंडाली का साग?
अपने मायके चमोली के पनाईं आईं बसंती देवी बताती हैं कि पहले के जमाने में जब घर में कुछ भी खाने के लिए नहीं होता था, तो पेट भरने के लिए लोग कंडाली का साग, झोली (कढ़ी) पीते थे. जो गर्म होने के साथ साथ काफी स्वादिष्ट होती थी. इसे बनाने के लिए पहले मुलायम कंडाली को तोड़कर आग की भट्टी में उसके कांटे जलाकर उसे पानी से साफ किया जाता हैं. फिर एक कढ़ाई में गर्म पानी के ऊपर कंडाली डालकर पकाया जाता है और पकने के बाद उसे सिलबट्टे में पीसते हैं. साग बनाने के लिए तेल में चावल या जीरे का तड़का डाला जाता है और उसके ऊपर पिसी हुई कंडाली डालकर भूना जाता है. फिर स्वाद अनुसार नमक और मसाले डालकर रोटी या भात के साथ खाते हैं.आजकल लोग इसमें प्याज, टमाटर और बेसन का घोल या आटे का घोल डालते हैं, जिसे ‘आलण’ कहा जाता है.
बीमारियों से निजात दिलाने वाला साग
गौचर अस्पताल में तैनात डॉक्टर रजत बनाते हैं कि कंडाली के पत्तों में खूब आयरन होता है जो कि खून की कमी को दूर करता है. इसके अलावा फार्मिक एसिड,एसटिल कोलाइट और विटामिन ए भी कंडाली में खूब मिलता है, जो पीलिया, उदर रोग, खांसी-जुकाम में फायदा देता है. इसके अलावा इसका साग/ सब्जी किडनी संबंधी बीमारियों में भी फायदा मिलता है.
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FIRST PUBLISHED : January 18, 2024, 15:26 IST