ऋषभ चौरसिया/लखनऊ: किंग जॉर्ज चिकित्सा विश्वविद्यालय के प्रोस्थोडोंटिक्स विभाग के डॉक्टरों ने टेरीग्वॉड और जाइगोमेटिक इंप्लांट की नई तकनीक का विस्तार किया है. इस तकनीक का उपयोग कैंसर, दुर्घटना या अन्य कारणों से जबड़े की हड्डी खो चुके व्यक्तियों के लिए किया जा सकता है. इस इंप्लांट के माध्यम से व्यक्ति केवल एक सप्ताह में फिक्स दांत लगवा सकेगा, जिससे उन्हें असली दांतों की तरह की सुविधा मिलेगी.
केजीएमयू के प्रोस्थोडोंटिक्स विभाग और इंडियन डेंटल एसोसिएशन की लखनऊ शाखा ने एक कार्यशाला आयोजित की जिसमें हिमाचल डेंटल कॉलेज के प्रो. दिव्य मल्होत्रा ने बताया कि जबड़े की ऊपरी हड्डी खो जाती है, तो टेरीग्वॉड और जाइगोमेटिक इंप्लांट का उपयोग करना बेहतर होता है. इस प्रक्रिया में जबड़े के ऊपरी टेरीग्वॉड बोन में इंप्लांट डालकर फिक्स दांत लगाए जा सकते हैं, जिससे दांतों की कार्यक्षमता 80 फीसदी तक बेहतर होती है. यह प्रक्रिया बत्तीसी लगाने से भी बेहतर होती है और शुगर के मरीजों को भी स्थाई दांत लगाए जा सकते हैं.
मरीज को फिक्स दांत लगाए जाते हैं
केजीएमयू के प्रोस्थोडोंटिक्स विभाग के एचओडी प्रो. पूरन चंद ने बताया कि टेरीग्वॉड और जाइगोमेटिक इंप्लांट का उपयोग विषम परिस्थितियों में किया जाता है, जैसे कैंसर, दुर्घटना या सर्जरी की वजह से ऊपरी जबड़े में हड्डी की कमी हो जाती है. इस तकनीक के माध्यम से मरीज को फिक्स दांत लगाए जाते हैं, जिससे उन्हें खाने, बोलने और देखने में आसानी होती है. इससे मरीज अपना सामान्य जीवन जीने लगता है और उन्हें जीवन की रोजमर्रा की गतिविधियों का आनंद लेने में मदद मिलती है.
यह प्रक्रिया काफी कारगर
केजीएमयू में प्रोस्थोडोंटिक्स विभाग के प्रो. कमलेश्वर सिंह ने बताया कि जहां हड्डी कम होती है, वहां पर नार्मल इंप्लांट डालना आसान नहीं होता है. आम तौर पर इंप्लांट लगाने के लिए आर्टिफिशियल बोन डाला जाता है, जिससे इलाज महंगा होता है और दांत लगाने में महीनों का समय लगता है. लेकिन टेरिगॉइड इंप्लांट में फायदा यह है कि इसमें एक सप्ताह में कैप लग जाते हैं, जिससे मरीज की क्वालिटी ऑफ लाइफ बेहतर होती है. ऐसे में जो मरीज हताश है और उनके बोन कम हैं, उनके लिए यह प्रक्रिया काफी कारगर है.
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FIRST PUBLISHED : January 26, 2024, 12:16 IST