किडनी ट्रांसप्लांट के बाद जिंदगीभर नहीं खानी पड़ेगी दवा ! डॉक्टर्स ने किया अनोखा कारनामा, बेहद खास है यह तकनीक

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हाइलाइट्स

किडनी ट्रांसप्लांट के बाद व्यक्ति को जिंदगीभर दवा लेनी पड़ती है, ताकि ऑर्गन रिजेक्शन न हो.
जानकारों की मानें तो नई तकनीक फिलहाल सीमित है, लेकिन भविष्य में कारगर हो सकती है.

UK’s First Rejection-Free Kidney Transplant: जब किसी शख्स की किडनी काम करना बंद कर देती हैं, तब उसकी जान बचाने के लिए किडनी ट्रांसप्लांट का सहारा लिया जाता है. किडनी ट्रांसप्लांट में एक स्वस्थ व्यक्ति से किडनी लेकर वह सर्जरी के जरिए मरीज के शरीर में लगाई जाती है. किडनी ट्रांसप्लांट के जरिए हर साल हजारों लोगों की जान बचाई जाती है. किडनी प्रत्यारोपण के बाद लोगों को जिंदगीभर कुछ दवाएं खानी पड़ती हैं. यह दवाएं इसलिए लेनी पड़ती हैं, ताकि शरीर ट्रांसप्लांट की गई किडनी को रिजेक्ट न करे. अब ब्रिटेन के डॉक्टर्स ने किडनी ट्रांसप्लांट को लेकर एक बड़ा कारनामा किया है, जिसकी चर्चा इस वक्त दुनियाभर में हो रही है. डॉक्टर्स ने एक बच्ची का अनोखा किडनी ट्रांसप्लांट किया है, जिसके बाद बच्ची को किडनी को सुरक्षित रखने के लिए जिंदगीभर दवाएं नहीं लेनी पड़ेंगी. ऐसा नई तकनीक की वजह से मुमकिन हो पाया है.

ब्रिटिश वेबसाइट एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार 8 साल की अदिति शंकर ब्रिटेन में अनोखा किडनी ट्रांसप्लांट प्राप्त करने वाली पहली बच्ची बन गई है. इस खास तरह के प्रत्यारोपण की वजह से बच्ची को किडनी के रिजेक्शन को रोकने के लिए जिंदगीभर दवा लेने की जरूरत नहीं पड़ेगी. यह कारनामा लंदन के ग्रेट ऑरमंड स्ट्रीट हॉस्पिटल के डॉक्टर्स ने किया है. डॉक्टरों का कहना है कि नई किडनी देने से पहले बच्ची के इम्यून सिस्टम की रीप्रोग्रामिंग करके यह सफलता मिली है. ऐसा करने के लिए एक्सपर्ट्स ने किडनी डोनेट करने वाली बच्ची की मां के बोन मेरो स्टेम सेल्स (bone-marrow stem cells) का उपयोग किया. इसकी वजह से बच्ची का शरीर नई किडनी को एक्सेप्ट करने में कामयाब रहा. यह एक अलग का प्रयोग था, जो पूरी तरह सफल हो गया.

रेयर डिजीज से जूझ रही थी बच्ची

दरअसल इस बच्ची को एक रेयर जेनेटिक डिजीज थी, जिसे शिम्के इम्यूनो-ओसियस डिसप्लेसिया (Schimke’s immuno-osseous dysplasia) कहा जाता है. इसकी वजह से इसका इम्यून सिस्टम वीक हो गया था और उसकी किडनी खराब होने लगी थीं. इसके बाद बच्ची को ट्रांसप्लांट के लिए अस्पताल ले जाया गया. डॉक्टर्स ने अंतरराष्ट्रीय सहयोगियों के साथ विशेष ट्रांसप्लांट को लेकर बात की, जो इस डिजीज वाले वाले अन्य बच्चों में किया गया था. इसके लिए सबसे पहले विशेषज्ञों ने बच्ची की मदर की स्टेम कोशिकाओं का उपयोग करके बच्ची के इम्यून सिस्टम को फिर से बनाया और इसके 6 महीने बाद किडनी ट्रांसप्लांट को अंजाम दिया.

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किडनी ट्रांसप्लांट के कुछ हफ्तों तक बच्ची को इम्यूनोसप्रेशन दवाएं दी गईं, लेकिन धीरे-धीरे दवाओं को बंद कर दिया गया. इससे इन शक्तिशाली दवाओं से लॉन्ग टर्म साइड इफेक्ट्स का खतरा दूर हो गया, जिन्हें आमतौर पर ऑर्गन रिजेक्शन को रोकने के लिए रोजाना जिंदगीभर लेना पड़ता है. अब बच्ची का इम्यून सिस्टम और ट्रांसप्लांट की गई किडनी दोनों सामान्य रूप से काम कर रहै हैं.

क्या सभी मामलों में ऐसा होना संभव?

ब्रिटेन का यह मामला सामने आने के बाद सवाल उठ रहा है कि क्या यह तकनीक किडनी ट्रांसप्लांट के सभी मामलों में लागू की जा सकती है? इस बारे में यूके किडनी रिसर्च के प्रोफेसर जेरेमी ह्यूजेस का कहना है कि यह एक नया उपचार है, जिसमें काफी जोखिम है. स्टेम-सेल ट्रांसप्लांट के दौरान मरीज को कीमोथेरेपी और रेडियोथेरेपी से भी गुजरना होगा. ऐसे में सभी मामलों में ऐसा करना आसान नहीं है. हालांकि किडनी ट्रांसप्लांट के बाद किसी को जीवनभर इम्यूनोसप्रेसेन्ट दवा की आवश्यकता नहीं है, यह एक महत्वपूर्ण सफलता है.

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हालांकि जानकारों की मानें तो इस समय प्रक्रिया का दायरा सीमित है और भविष्य में यह काफी कारगर हो सकता है. दरअसल हमारा शरीर ट्रांसप्लांट किए गए ऑर्गन को बाहरी मानता है और उसे नष्ट करना शुरू कर देता है. इससे बचने के लिए ट्रांसप्लांट के बाद लोगों को इम्यूनोस्प्रेसिव दवाएं दी जाती हैं, जो किडनी रिजेक्शन को रोकती हैं. हालांकि ट्रांसप्लांट के बाद किडनी इंफेक्शन का खतरा बढ़ जाता है.

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