हाइलाइट्स
उम्र बढ़ने पर हमारे घुटने डिजनरेट होना शुरू हो जाते हैं.
अर्थराइटिस के मरीजों को रोज एक्सरसाइज करनी चाहिए.
World Arthritis Day Significance: आज के जमाने में लोगों की लाइफस्टाइल और खान-पान का सिस्टम बिगड़ गया है, जिसकी वजह से बीमारियों का अटैक बढ़ने लगा है. कम उम्र में ही तमाम लोग बुजुर्गों वाली बीमारियों का शिकार होने लगे हैं. वर्तमान समय में अर्थराइटिस (Arthritis) की समस्या तेजी से बढ़ रही है. यह हमारे शरीर के जॉइंट्स से जुड़ी बीमारी है, जो बेहद दर्दनाक होती है. अर्थराइटिस को हिंदी में गठिया कहा जाता है. इस बीमारी में लोगों के जॉइंट्स डैमेज होना शुरू हो जाते हैं और उन्हें चलने-फिरने में काफी दिक्कत होती है. हर साल 12 अक्टूबर को गठिया की बीमारी के बारे में लोगों को जागरूक करने के लिए ‘वर्ल्ड अर्थराइटिस डे’ यानी विश्व गठिया दिवस मनाया जाता है. इस खास मौके पर आज आपको बताएंगे कि गठिया की बीमारी किस तरह लोगों के जॉइंट्स को डैमेज करती है और इसका खतरा किन लोगों को ज्यादा है. साथ ही यह भी जानेंगे कि इस बीमारी से कैसे बचा जा सकता है.
फोर्टिस हॉस्पिटल (ग्रेटर नोएडा) के हड्डी रोग विशेषज्ञ डॉ. भरत गोस्वामी के मुताबिक अर्थराइटिस जोड़ों से संबंधित बीमारी है, जिसकी वजह से शरीर के जॉइंट्स डैमेज होना शुरू हो जाते हैं. अर्थराइटिस दो तरह की होती है. पहली प्राइमरी अर्थराइटिस, जिसे ऑस्टियोअर्थराइटिस कहा जाता है. दूसरी सेकंडरी अर्थराइटिस होती है, जो रूमेटॉइड अर्थराइटिस, पोस्ट ट्रॉमेटिक अर्थराइटिस, इन्फेक्टिव अर्थराइटिस की वजह से होती है. आमतौर पर गठिया शब्द का इस्तेमाल प्राइमरी अर्थराइटिस के लिए किया जाता है. ये बीमारी उम्र बढ़ने के साथ होती है और इसमें जॉइंट्स डिजनरेट होने लगते हैं. घुटनों के कार्टिलेज की डिजनरेशन को ऑस्टोअर्थराइटिस कहा जाता है. भारत में सबसे ज्यादा ऑस्टोअर्थराइटिस के मामले घुटनों से संबंधित होते हैं. जबकि वेस्टर्न देशों में इसका असर हिप जॉइंट पर देखने को मिलता है.
इस उम्र के बाद अर्थराइटिस का खतरा ज्यादा
डॉ. भरत गोस्वामी कहते हैं कि 40 से 45 की उम्र के बाद लोगों के घुटने धीरे-धीरे डिजनरेट होना शुरू हो जाते हैं. अगर इनका खास खयाल न रखा जाए, तो यह परेशानी धीरे-धीरे अर्थराइटिस का रूप ले लेती है. 40 की उम्र के बाद सभी लोगों को अर्थराइटिस का खतरा होता है. हालांकि जो लोग अच्छा रुटीन फॉलो करते हैं, नियमित रूप से एक्सरसाइज करते हैं और पोषक तत्वों से भरपूर डाइट लेते हैं, उन्हें अर्थराइटिस का खतरा कम होता है. प्रीकॉशन लेने वाले लोगों के घुटने लंबी उम्र तक ठीक रहते हैं. इसके अलावा भी अर्थराइटिस के कई रिस्क फैक्टर होते हैं, जिन्हें नजरअंदाज नहीं करना चाहिए.
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अर्थराइटिस के ये रिस्क फैक्टर्स भी जान लीजिए
हड्डी रोग विशेषज्ञ की मानें तो जेनेटिक कारणों की वजह से अर्थराइटिस की समस्या हो सकती है. अगर आपकी अर्थराइटिस की फैमिली हिस्ट्री है, तो आपको इसका खतरा ज्यादा होता है. महिलाओं को अर्थराइटिस का जोखिम अधिक होता है. जो लोग प्रॉपर एक्सरसाइज या वॉक नहीं करते हैं, उन्हें भी इस बीमारी का खतरा अन्य लोगों की अपेक्षा ज्यादा होता है. कैल्शियम और विटामिन D का हमारे घुटनों को सही रखने में अहम योगदान होता है. जिन लोगों के शरीर में कैल्शियम और विटामिन डी की कमी होती है, उनके घुटनों में डैमेज ज्यादा होती है. ऐसे लोग कम उम्र में गठिया के मरीज बन सकते हैं.
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इन 5 तरीकों से करें अर्थराइटिस से बचाव
डॉ. भरत गोस्वामी के अनुसार अर्थराइटिस से बचने के लिए लोगों को अच्छी लाइफस्टाइल अपनानी चाहिए. नियमित रूप से वॉक और एक्सरसाइज करनी चाहिए. कैल्शियम और विटामिन डी से भरपूर फूड्स का सेवन करना चाहिए. आप दूध के साथ हल्दी का सेवन करके जॉइंट्स को डैमेज से बचा सकते हैं. अगर आपके शरीर के किसी भी जॉइंट में दर्द हो, तो तुरंत डॉक्टर से मिलकर अपनी जांच कराएं.
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FIRST PUBLISHED : October 12, 2023, 10:35 IST