हाइलाइट्स
केतकी के फूल से तैयार होता है केवड़े का जल.
केवड़े के जल की मिठाइयों में बेहद मांग है.
माना जाता है कि शिव की पूजा में केतकी के पुष्प को नहीं चढ़ाया जाता है.
History and Benefits of Kewra Water: आज हम आपको एक ऐसी ‘सुगंध’ के बारे में बताने जा रहे हैं, जो आपके तन-मन को तो महकाती तो है ही, साथ ही भोजन को कूल बनाती है और उसमें भी सुगंध भर देती है. यह सुगंध है केवड़े का जल, जिसे भारत के पौरणिक पुष्पों में से एक केतकी (Ketaki flower) से बनाया जाता है. इस पुष्प से गंध तो तैयार होती ही है, साथ ही भोजन में स्वाद भरने के लिए भी उपयोग में लाया जाता है. अधिकतर मिष्ठान्न में इसका प्रयोग तो होता ही है, साथ ही मुगलई नॉन वेज डिशेज में भी इसका इस्तेमाल किया जाता है. वैसे इस पुष्प का धार्मिक महत्व भी है.
शिव पुराण में है केतकी के पुष्प का वर्णन
जिस तरह अन्य पुष्पों से गंध तैयार की जाती है, वैसे ही केतकी (Pandanus Flower) से भी होती है, लेकिन केतकी और गुलाब ऐसे पुष्प हैं, जिनका जल भी तैयार किया जाता है. गुलाब जल का औषधियों व कॉस्मेटिक उत्पादों में ज्यादा प्रयोग होता है, लेकिन केतकी से बना केवड़े का जल ऐसा है, जिसका उपयोग भोजन में स्वाद भरने के अलावा उसे कूल व सुगंध भरने के लिए भी किया जाता है. भारत में केतकी के पुष्प का पौराणिक आधार है. शिव पुराण में इसका वर्णन है. माना जाता है कि शिव की पूजा में केतकी के पुष्प को नहीं चढ़ाया जाता, जबकि भगवान शिव के पुत्र गणेश जी को केतकी के पुष्प बहुत ही प्रिय हैं.
इसकी सुगंध थोड़ी मीठी व नाजुक मानी जाती है
केतकी के पुष्प दो प्रकार के होते हैं, सफेद व स्वर्ण रंग के. सफेद से आसव विधि (Evaporation) द्वारा केवड़ा जल बनाया जाता हे. इसके लिए पुष्पों के अलावा इसकी पतली टहनियां व पत्तियां भी प्रयोग में लाई जाती हैं. इसकी पत्तियों के अन्य प्रयोग भी होते हैं. लंबी, नुकीली, चिपटी, कोमल और चिकनी पत्तियों से चटाइयां, टोपी आदि बनाई जाती है. कुछ क्षेत्रों में इसकी मुलायम पत्तियों का साग भी पकाकर खाया जाता है. आयुर्वेद में इसके साग को कफनाशक माना जाता है. पुरानी दिल्ली स्थित चांदनी चौक में मुगलकालीन इत्र की दुकान ‘गुलाब सिंह जौहरी मल’ के मालिक मुकुल गंधी का कहना है केतकी उन विशेष फूलों में से एक है, जिसका इत्र व सुगंधित जल तैयार किया जा सकता है. अगर महसूस करने की बात करें तो इसमें वेनिला और गुलाब के अलावा थोड़ी मीठी सुगंध भी होती है. केवड़े की सुगंध को नाजुक माना जाता है, इसलिए भोजन में इसका उपयोग होता है.
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मुगलकाल में केवड़ा जल ने खूब नाम कमाया
फूड हिस्टोरियन मानते हैं कि भोजन में केवड़े के जल का उपयोग सालों से दक्षिण एशिया के देशों में किया जा रहा है. अब आहार में उभरने वाली सुगंध के चलते पश्चिमी देशों में भी इसका प्रयोग लगातार बढ़ रहा है. चूंकि, केवड़ा जल अब नामी कंपनियां भी बेच रही हैं और ऑनलाइन भी इसकी खरीदारी की जा रही है, इसलिए इसकी पहुंच अब रसोई में लगातार बढ़ रही है. फूड एक्सपर्ट व होमशेफ सिम्मी बब्बर के अनुसार ऐसा माना जाता है कि मुगलकाल के भोजन में केवड़े के जल का प्रयोग तेजी से बढ़ा और मुगलई बिरयानी, कोरमा, स्पेशल कबाब के अलावा फिरनी (खीर) आदि में इसकी मौजूदगी अनिवार्य मानी गई. उसका कारण यह है कि यह भोजन को स्वदिष्ट तो बनाता ही है साथ ही उसमें कूल-कूल खुशबू भी भर देता है.
भोजन का भारीपन कम करे, मिठाइयों का स्वाद बढ़ाए
जब केवड़े के जल को भोजन में मिलाया जाता है तो इसकी गंध उस भोजन को खाने के लिए आकर्षित करने लगती है. इसकी खुशबू के चलते खाने के बाद भोजन भारीपन नहीं महसूस होने देता है. केवड़े के जल की तो मिठाइयों में बेहद मांग है. गुलाब जामुन, रसगुल्ला, रबड़ी रसमलाई, खीर को और जायकेदार व खुशबूदार बनाने के लिए इसका प्रयोग किया जाता है. बंगाली मिठाइयों को तो परोसे जाने से पहले उस पर केवड़े के जल का छिड़काव करने की परंपरा आज भी कायम है.
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स्किन को चमकदार व मुलायम बनाए
केवड़े के जल को शरीर के लिए भी लाभकारी माना जाता है. हेल्थ एक्सपर्ट इस जल का उपयोग अरोमाथेरेपी (Aromatherapy) के लिए भी करते हैं. इस थेरेपी से मूड में सुधार होता है. दर्द से राहत मिलती और रिलैक्स की भावना बढ़ती है. जानी-मानी आयुर्वेदाचार्य डॉ. वीना शर्मा के अनुसार, केवड़े के जल को अगर स्किन पर लगाया जाए तो यह उसको स्वस्थ तो रखता ही है, साथ ही स्किन को चमकदार व मुलायम भी बनाए रखता है. चेहरे पर अगर मुंहासे हैं तो यह उसे भी हटाने में मदद करता है. सबसे बड़ी बात यह है कि केवड़े का जल मन को शांत और शीतल करता है. ऐसा होता है तो शरीर के स्वस्थ रहने की संभावनाएं ज्यादा हैं.
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FIRST PUBLISHED : October 28, 2023, 14:01 IST