क्या बला है डार्क पैटर्न, जिस पर सरकार ने लगाया बैन, उदाहरण से समझेंगे तो 2 मिनट में पल्ले पड़ जाएगी करतूत!

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नई दिल्ली. डार्क पैटर्न शब्द सुनने में मुश्किल या भारी प्रतीत हो सकता है, मगर इसे समझना ज्यादा कठिन नहीं है. दिक्कत यह है कि इसके बारे में लोग अनजान हैं. आज हम कोशिश कर रहे हैं कि आप इसे बेहद आसानी से समझ लें. इस शब्द को समझने से पहले आपको उस खबर के बारे में पता होना चाहिए, जिसकी वजह से डार्क पैटर्न चर्चा में है. दरअसल, भारत सरकार ने हाल ही में सभी ई-कॉमर्स प्लेटफॉर्म्स, जैसे कि अमेज़न, फ्लिपकार्ट इत्यादी, को डार्क पैटर्न के इस्तेमाल किए जाने पर पाबंदी लगा दी है. 30 नवम्बर को जारी एक नोटिफिकेशन में सेंट्रल कंज्यूमर प्रोटेक्शन अथॉरिटी (CCPA) ने डार्क पैटर्न को रोकने संबंधी गाइडलाइन्स जारी कीं. चलिए समझते हैं कि ये है क्या बला?

आप फेसबुक या इंस्टाग्राम ऐप का इस्तेमाल तो करते ही होंगे. करते हैं तो इस टर्म को समझना काफी आसान होगा. कई बार आपको नोटिफिकेशन मिली होगी, जिसमें आपकी परमिशन मांगी होगी. नीचे दी गई तस्वीर को ध्यान से देखिए. साफ दिख रहा है कि कंपनी आपके जानबूझकर एक खास एक्शन करवाना चाहती है. आपको यह सामान्य लग रहा हो सकता है, मगर यूजर इंटरफेस (UI) डिजाइन में ऐसा खेल किया गया है, जो आम यूजर को समझ में नहीं आता.

इस ऐप में जो टेक्स्ट लिखा गया है उसमें एक्टिविटी (Activity) और पर्सनलाइज्ड (Personalized) शब्दों का इस्तेमाल है, न कि ट्रैकिंग (Tracking) और टार्गेटिंग (Targeting) का. पर अगर गौर से समझा जाए तो कंपनी आपको ट्रैक करना चाहती है और ट्रैक करने के बाद आपको खास तरह के विज्ञापनों के लिए टारगेट करेगी. सॉफ्ट और अच्छे दिखने वाले शब्दों और डिजाइन के सहारे ट्रैकिंग और टार्गेटिंग का काम किया जाता रहा है. यह आज से नहीं, बल्कि लम्बे समय से है.

न चाहकर भी हां कर देते हैं यूजर!
संभव है कि आप फेसबुक और इंस्टाग्राम को अपने बारे में कुछ नहीं बताने का इरादा रखते हों, मगर जब आप बेहतर अनुभव (Better experience), पर्सनलाइज्ड (Personalized), एक्टिविजी (Activity) जैसे शब्दों को पढ़ते हैं तो आपको ये शब्द अच्छे लगते हैं. जैसे ही आपको ये शब्द अच्छे लगेंगे, आप किसी खास एक्शन के लिए आगे बढ़ेंगे. संभव है आपको किसी तरह का खतरा या नेगेटिविटी नजर न आए और आप वही कर दें, जो कंपनी आपसे कराना चाहती है.

आप वह फैसला इसलिए भी लेंगे, क्योंकि डिजाइन में स्वीकारने वाले विकल्प को खासतौर पर उभारकर दिखाया गया होगा. ऊपर दिखाई गई तस्वीर में बिलकुल नीचे देखेंगे तो पाएंगे कि दो विकल्प दिए गए हैं. पहले विकल्प (Make Ads Less Personalized) का बैकग्रांउड कलर काला है, जो उसे पूरी तस्वीर के बैकग्रांउड कल में मिक्स कर रहा है. एक नजर देखा जाए तो वह हाइलाइट नहीं किया गया है. उसके बिलकुल नीचे दूसरा विकल्प Make Ads More Personalized है. इसे हाइलाइट किया गया है, जोकि यूजर का ध्यान आकर्षित करता है.

यह तो केवल एक उदाहरण है. आपने जरूर डार्क पैटर्न के कुछ और उदाहरण देखे होंगे. चलिए उनके बारे में संक्षिप्त में चर्चा करते हैं-

  • जब आप किसी सर्विस का फ्री ट्रायल लेते हैं तो उसके लिए साइनअप करते समय ही आपको ट्रायल खत्म होने पर ऑटोमेटिकली शुल्क कट जाने के लिए अनुमति देने होती है. ऐसा क्यों नहीं होता कि फ्री ट्रायल खत्म होने के बाद यूजर यह निर्णय करे कि उसे अपने कार्ड्स की डिटेल देनी है या नहीं.
  • कई बार वेब ब्राउजिंग करते समय या ऐप चलाते हुए कुछ ऐसे विज्ञापन पॉप-अप हो जाते हैं, जिन्हें बंद करने वाला बटन तक नजर नहीं आता. वह कहीं कोने में काफी हल्के रंग में होता है. यह बटन इतना छोटा होता है कि इस पर टैप करते हुए कई बार विज्ञापन पर ही टैप हो जाता है और दूसरा लिंक खुल जाता है. यह भी डार्क पैटर्न है.
  • कई बार आपने ई-कॉमर्स ऐप्स पर देखा होगा कि कोई डील दी गई होती है और उस पर समय चल रहा होता है. ऐसा दिखाया जाता है कि यदि आपने एक निश्चित समय में आइटम को नहीं खरीदा तो आप डील मिस कर देंगे और फिर कभी उसी रेट पर डील नहीं मिलेगी.
  • कुछ ऐप और वेबसाइट्स ऐसी होती हैं, जिनमें साइन-इन या लॉग-इन करना तो बहुत आसान होता है, मगर साइन-आउट करने का विकल्प खोजने पर भी नहीं मिलता.

उपरोक्त उदाहरणों से आप समझ गए होंगे कि किस तरह कंपनियां यूजर को एक जाल में फंसाकर, अपनी मर्जी के मुताबिक एक्शन करने पर विवश कर देती हैं. यूजर को हालांकि यह लग सकता है कि वह अपनी इच्छा से ऐसा कर रहा है. अब भविष्य में जब भी आप ऐसा कुछ देखेंगे तो झट से समझ जाएंगे कि यह डार्क पैटर्न है.

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