कैसे काम करता है क्रिकेट में अल्ट्राएज? क्या है ये टेक्नोलॉजी? हल्के टच का भी चल जाता है पता

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नई दिल्ली. अगर आप क्रिकेट देखने के शौकीन हैं तो आपने देखा ही होगा कि मैच के दौरान अल्ट्रा-एज टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल किया जाता है. ये टेक्नोलॉजी डिसीजन रिव्यू सिस्टम यानी DRS का हिस्सा है. ये टेक्नोलॉजी गेम के दौरान बैट, पैड और कपड़ों से क्रिएट हुए साउंड के बीच में अंतर करने के काम आती है. लेकिन, बहुत कम ही लोगों को पता होता है कि ये टेक्नोलॉजी आखिर काम कैसे करती है. आइए आपको बताते हैं.

अल्ट्रा-एज टेक्नोलॉजी एक ऐसा सिस्टम है जिसका इस्तेमाल क्रिकेट में यह तय करने के लिए किया जाता है कि वैलिड गेंद फेंके जाने के बाद गेंद ने बल्ले को छुआ है या नहीं. ये स्निकोमीटर का एक एडवांस वर्जन है जिसका उपयोग एज डिटेक्शन के लिए किया जाता है. टेस्ट और वेरिफिकेशन के बाद इंटरनेशनल क्रिकेट काउंसिल (ICC) द्वारा इसे उपयोग के लिए मंजूरी दे दी गई थी. वर्तमान में इसका इस्तेमाल क्रिकेट मैच के दौरान किया जाता है.

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अल्ट्रा-एज टेक्नोलॉजी कैसे करती है काम?
दरअसल, बल्लेबाज के पीछे स्टंप माइक का एक सिस्टम होता है और स्टेडियम के चारों ओर कैमरे लगाए जाते हैं जो गेंद और उससे होने वाली ध्वनि पर नजर रखते हैं. बल्ले से टकराने पर गेंद एक विशेष ध्वनि उत्पन्न करती है जिसे विकेट द्वारा पिक कर लिया जाता है और ट्रैकिंग स्क्रीन पर डिटेक्ट किया जाता है. ऐसे में अगर गेंद ने बल्ले को हल्का सा छू लिया तो पता चल जाता है और आउट देने या न देने का निर्णय लिया जाता है.

स्टंप में मौजूद माइक फ्रीक्वेंसी लेवल के आधार पर बैट, पैड और बॉडी से निकलने वाले साउंड के बीच अंतर करने में सक्षम होते हैं. जैसे ही गेंद बल्ले के पास जाती है, मैदान के विपरीत छोर पर बल्लेबाज के दोनों ओर लगे कैमरे फोटोग्राफिक रिप्रेजेंटेशन के लिए गेंद को ट्रैक करते हैं. फिर साउंड माइक्रोफ़ोन गति के आधार पर साउंड पिक करता है और उसे ऑसिलोस्कोप पर भेजता है. यह ऑसिलोस्कोप वेव्स में साउंड फ्रीक्वेंसी लेवल को दर्शाता है. कैमरा और स्टंप माइक का कॉम्बिनेशन अंपायरों को यह तय करने में मदद करता है कि गेंद ने बल्ले को छुआ है या नहीं.

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