गैंग्स ऑफ वासेपुर, मकबूल, गुलाल और पिंक जैसी फिल्मों से सुर्खियां बटोरने वाले पीयूष मिश्रा के गीतों में मिलन की महक भी है और जुदाई की कसक भी. फिल्में तो पीयूष ने ढेर सारी की हैं, लेकिन जिन्होंने उनकी शॉर्ट मूवीज़ नहीं देखीं, उन्होंने उनकी कला को अभी भी पूरी तरह नहीं जाना है. मुश्किल होता है खुद की उम्र से आगे बढ़कर कोई रोल करना और उस रोल में जान फूंक देना, लेकिन यह काबिलियत पीयूष मिश्रा में कूट-कूट कर भरी पड़ी है. राजकुमार संतोषी की फिल्म ‘लीजेंड ऑफ भगत सिंह’ से पीयूष का गहरा नाता है. इस फिल्म में उन्होंने बतौर पटकथाकार काम किया था.
पीयूष की सबसे ख़ास बात ये है, कि वे हर उम्र के दिल में एक ही तरह से धड़कते हैं. उन्हें सिर्फ गीतकार, सिर्फ संगीतकार, सिर्फ कलाकार, सिर्फ कहानीकार या फिर सिर्फ कवि, अलग-अलग से कहना सही नहीम होगा, क्योंकि वे इनमें से सबकुछ एकसाथ हैं. पीयूष अपने गीतों और कविताओं से जनता को झूमने पर मजबूर भी करते हैं और अपने अभिनय से आंखों को नम भी करते हैं. वह दिल में उतर जाने वाले स्वर भी लगाते हैं और अपनी कहानियों से दर्शकों के मस्तिष्क पर कई तरह के प्रश्नचिन्ह भी छोड़ जाते हैं.
गुलज़ार और जावेद साहब के अलावा बहुत कम गीतकार हुए, जो गीतों में कविता को बचा पाये, लेकिन पीयूष मिश्रा के बाद कविता प्रेमियों को इस चिंता से मुक्त हो जाना चाहिए. क्योंकि आज के समय में पीयूष मिश्रा उन चंद गीतकारों में से हैं. साथ ही उन्होंने गालिब के अंदाज़-ए-बयां को अब तक बरकरार रखा है. अपनी कई कविताओं में पीयूष वीर रस के उन कवियों की याद दिलाते हैं, जिनकी रचनाओं ने रण के मैदान में जान फूंकने का काम किया. प्रस्तुत है पीयूष मिश्रा की लोकप्रिय कविता, जिसे गुलाल फिल्म में गीत के रूप में भी शामिल किया गया.
कविता : पीयूष मिश्रा
आरंभ है प्रचंड बोल मस्तकों के झुंड
आज जंग की घड़ी की तुम गुहार दो,
आन बान शान या की जान का हो दान
आज एक धनुष के बाण पे उतार दो !!!
मन करे सो प्राण दे, जो मन करे सो प्राण ले
वही तो एक सर्वशक्तिमान है
विश्व की पुकार है ये भागवत का सार है कि
युद्ध ही तो वीर का प्रमाण है !!!
कौरवों की भीड़ हो या पांडवों का नीर हो
जो लड़ सका है वही तो महान है !!!
जीत की हवस नहीं
किसी पे कोई वश नहीं
क्या ज़िंदगी है ठोकरों पर मार दो,
मौत अंत है नहीं तो मौत से भी क्यों डरें
ये जाके आसमान में दहाड़ दो !
आरंभ है प्रचंड बोल मस्तकों के झुंड
आज जंग की घड़ी की तुम गुहार दो,
आन बान शान या की जान का हो दान
आज एक धनुष के बाण पे उतार दो !!!
वो दया का भाव या की शौर्य का चुनाव
या की हार का वो घाव तुम ये सोच लो,
या की पूरे भाल पर जला रहे वे जय का लाल,
लाल ये गुलाल तुम ये सोच लो,
रंग केसरी हो या मृदंग केसरी हो
या की केसरी हो लाल तुम ये सोच लो !!
जिस कवि की कल्पना में ज़िंदगी हो प्रेम गीत
उस कवि को आज तुम नकार दो,
भीगती नसों में आज फूलती रगों में आज
आग की लपट का तुम बघार दो !!!
आरंभ है प्रचंड बोल मस्तकों के झुंड
आज जंग की घड़ी की तुम गुहार दो,
आन बान शान या की जान का हो दान
आज एक धनुष के बाण पे उतार दो !!!
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FIRST PUBLISHED : November 29, 2023, 10:04 IST