न कानून पढ़ा…न पद की मर्यादा रखी…उपराष्‍ट्रपति धनकड़ का अशोक गहलोत को करारा जवाब, क्‍या है पूरा विवाद? जानें

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नई दिल्‍ली. उपराष्‍ट्रपति जगदीप धनखड़ ने शुक्रवार को बिना नाम लिए इशारों-इशारों में राजस्‍थान के मुख्‍यमंत्री अशोक गहलोत की क्‍लास लगाई. लक्ष्‍मणगढ़ में एक सभा को संवोधित करते हुए उन्‍होंने बिना नाम लिए कहा कि यहां के राजस्‍थान के मुख्‍यमंत्री को मेरा राज्‍य में आना पसंद नहीं. वो मुझसे कहते हैं कि क्‍यों आते हो बार-बार. राष्‍ट्रपति ने जवाबी हमला करते हुए अपने अंदाज में कहा कि अगर संविधान को थोड़ा पड़ लेते तो यह सवाल नहीं पूछते. कुछ दिन पहले अशोक गहलोत ने एक जनसभा के दौरान उपराष्‍ट्रपति के लिए कहा था कि बार-बार यहां आने का कोई तुक नहीं है.

उपराष्‍ट्रपति जगदीप धनकड़ ने कहा, ‘मैं पहले भी कई जगह गया हूं. पर कुछ लोगों ने कहा कि आप क्‍यों आते हो बार-बार. मैं थोड़ा अचंभित हो गया. क्‍योंकि कहने वाले ने ना तो संविधान को पड़ा. ना कानून को पढ़ा और ना अपने पद की मर्यादा रखी. कानून को अगर झांक लेते तो उन्‍हें पता लग जाता कि भारत के उपराष्‍ट्रपति की कोई भी यात्रा अचानक नहीं होती. बड़े सोच-विचार मंथन चिंतन के बाद होती है. बस कह दिया कि आपका आना ठीक नहीं है.’

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शेरो-शायरी में दिया जवाब 

उपराष्‍ट्रपति जगदीप धनकड़ ने आगे कहा, “किस कानून के तहत यह कहा गया यह पता नहीं. क्‍योंकि राज्‍यसभा में शेरो-शायरी होती है. रास्‍ते में मैंने भी एक छोटी सी कविता लिखी. मैंने सोचा आपके साथ साझा करूं. कविता को कहने से पहले मुझे एक गजल याद आ गई. जिंदगी से बड़ी कोई सजा भी नहीं और जुर्म क्‍या है पता भी नहीं.“ यह गजल है. इसी की तर्ज पर व्‍यथित होकर. मैं पीड़ित महसूस करके. मुझे इस मामले में क्‍यों घसीटा. मेरा काम तो संविधान सम्मत था. जनता के भले के लिए था.…”

उपराष्‍ट्रपति ने कहा कि संवैधानिक पदों पर बैठे लोगों का सम्मान होना चाहिए और हम सभी को एकजुट होकर, हाथ में हाथ डालकर, सहयोग और समन्वय के साथ आम सहमति के दृष्टिकोण से बड़े पैमाने पर लोगों की सेवा करनी होगी.

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