जो बात जुबा नहीं कह पाती आंखें कह जाती हैं. आंखें दीवाना बना देती हैं तो गुस्से का इजहार करती हुई आग भी उगलती हैं. किसी को अपनी माशूका की आंखों में समंदर दिखलाई पड़ता है तो किसी को नशा. मचलती आंखों को कोई हया की निशानी बताता है तो कोई कत्ल करने की अदा.